चीनी की मिठास पर मौसम की मार, 13 साल में सबसे ज्यादा हुआ भाव, आपकी जेब पर हो सकता है ये असर
त्योहारों का सीजन दस्तक दे चुका है. आने वाले दिनों में लगातार त्योहार पड़ने वाले हैं. हालांकि महंगाई लोगों का त्योहारी मूड बिगाड़ रही है. खासकर खाने-पीने की चीजों की महंगाई से लोग ज्यादा परेशान हैं.
इस बीच अब चीनी से भी लोगों का स्वाद बिगड़ने लगा है. ग्लोबल मार्केट में चीनी की कीमतें कई सालों के उच्च स्तर पर पहुंच गई हैं, जिससे घरेलू बाजार में भी दबाव पड़ रहा है.
भारत का भी इसमें योगदान
फूड एंड एग्रीकल्चर ऑर्गेनाइजेशन की एक ताजी रिपोर्ट के अनुसार, चीनी की वैश्विक कीमतें सितंबर महीने में ऐसे उच्च स्तर पर पहुंच गईं, जो करीब 13 सालों में सबसे ज्यादा है. एफएंडओ की मानें तो वैश्विक स्तर पर चीनी की कीमतें बढ़ाने में भारत का भी योगदान है. संगठन का कहना है कि अल नीनो के चलते भारत और थाईलैंड में गन्ने की फसल प्रभावित हुई है. इसका असर चीनी की कीमतों पर दिख रहा है.
नवंबर 2010 के बाद सबसे ज्यादा
संयुक्त राष्ट्र की कृषि एजेंसी ने बताया कि सितंबर महीने के दौरान ओवरऑल खाने-पीने की चीजों की कीमतें तेजी से बढ़ी हैं. हालांकि चीनी की कीमतें बाकियों की तुलना में ज्यादा बढ़ी हैं. एफएंडओ की चीनी की कीमतों का सूचकांक अगस्त की तुलना में सितंबर महीने के दौरान 9.8 फीसदी बढ़ा. अब सूचकांक नवंबर 2010 के बाद सबसे उच्च स्तर पर पहुंच गया है.
सता रही है इस बात की आशंका
एफएंडओ का शुगर प्राइस इंडेक्स लगातार दूसरी महीने बढ़ा है. सितंबर महीने की रिकॉर्ड तेजी से पहले अगस्त महीने में भी इस सूचकांक में तेजी देखी गई थी. एजेंसी का कहना है कि अल नीनो के चलते गन्ने के उत्पादन का परिदृश्य खराब हुआ है. अगर गन्ने की उपज प्रभावित होगी तो सीधे तौर पर चीनी के उत्पादन पर असर पड़ेगा. इसी आशंका ने चीनी की कीमतें बढ़ा दी है. इससे फिलहाल राहत मिल पाने का कोई संकेत भी नहीं दिख रहा है.
कच्चे तेल से भी हो रहा असर
भारत और थाईलैंड दोनों प्रमुख वैश्विक चीनी उत्पादक देश हैं. दोनों देशों में इस साल गन्ने की फसल अल नीनो से प्रभावित हुई है. अल नीनो एक मौसमी डेवलपमेंट है, जो अमूमन 7 से 9 साल में एक बार होता है और इसका असर 9 से 12 महीने तक देखने को मिलता है. संयुक्त राष्ट्र की एजेंसी का कहना है कि अल नीनो के अलावा कच्चे तेल की बढ़ी कीमतें भी चीनी के भाव बढ़ा रही हैं.