हमले की 4 साल से तैयारी कर रहा था हमास, जानिए इजरायल पर अटैक की इनसाइड स्टोरी
इजरायल ने गाजा की चौतरफा घेराबंदी कर दी है. सरहद पर अपनी सेना का सबसे बड़ा जमावड़ा कर रखा है. सैकड़ों टैंक और लाखों जवान सिर्फ आदेश मिलने का इंतजार कर रहे हैं. इससे पहले हवाई हमलों में सैकड़ों की संख्या में लोग मारे जा चुके हैं.
हजारों घायल हैं. घर से बेघर हो चुके लोग खाने-पीने के लिए तड़प रहे हैं. इजरायल और हमास के बीच इस जंग का आगाज 7 अक्टूबर को हुआ था, जब हमास के आतंकियों ने इजरायल में घुसकर वहां के लोगों को मौत के घाट उतार दिया. कत्लेआम मचा दिया. इतना ही नहीं सैकड़ों बेकसूर लोगों को बंधक बनाकर अपने साथ गाजा ले आए. हमास का हमला इतना सुनियोजित और त्वरित था कि इजरायल को संभलने तक का मौका नहीं मिला. दरअसल, हमास इस हमले की तैयारी पिछले चार साल से कर रहा था. इसके लिए उसके आतंकियों को दक्षिण लेबनान में विशेष रूप से प्रशिक्षित किया गया था.
ईरानी जनरल कासिम सुलेमानी की हत्या के बदले खौफनाक हमला
साल 2020 में अमेरिकी सेना ने ईरानी आर्मी के एक बड़े अधिकारी जनरल कासिम सुलेमानी की हत्या कर दी थी. उनको ईरान का दूसरा सबसे ताकतवर शख्स माना जाता था. ईरान के सबसे ताकतवर नेता आयतुल्लाह अली खामेनेई के बाद जनरल कासिम सुलेमानी का ही स्थान था. लेकिन इराक की राजधानी बगदाद में एयरपोर्ट के पास हुए अमेरिकी मिसाइल हमले में कासिम सुलेमानी को मार गिराया गया. इसमें पॉपुलर मोबिलाइजेशन फोर्सेज के डिप्टी कमांडर अबु महदी अल-मुहांदिस भी मारा गया. इस हमले में इजरायल ने अमेरिका की मदद की थी. उसके इशारे पर ही अमेरिका ने इस ऑपरेशन को अंजाम दिया था. इसके बाद से ही ईरान इजरायल से बदला लेना चाहता था. फिलिस्तीनी चुनावों में हमास की जीत के तुरंत बाद इस हमले की योजना बनाई गई. इसके तहत हमास के 200 आतंकियों को हमले के लिए तैयार किया गया.
हमास-हिजबुल्लाह की मदद कर ईरान को क्या हासिल हुआ?
हमास के आतंकियों को दक्षिण लेबनान भेजा गया. वहां हिजबुल्लाह कमांडरों ने उन्हें विशेष रूप से प्रशिक्षित किया. इन सबके पीछे कथित रूप से ईरान का हाथ माना गया है. उसने ही आधुनिक हथियार से लेकर पैसे तक मुहैया कराए हैं. हिजबुल्लाह और हमास का मुख्य उद्देश्य आईडीएफ पर ऐसा हमला करना था जिससे कि इजरायल और अमेरिका का मनोबल गिर जाए. साल 2021 में तालिबान द्वारा अफगानिस्तान में अमेरिकी सेना की हार मीडिल ईस्ट में इजराइल और अमेरिका के खिलाफ ईरान की इस साजिश को बढ़ावा देने वाली थी. इस तरह ईरान ने इजराइल पर 7 अक्टूबर के हमलों को अंजाम देने में हमास और हिजबुल्लाह की मदद करके दो मुख्य लक्ष्य हासिल किए हैं. पहला, इजराइल के खिलाफ अरब देशों को एकजुट करना. दूसरा, फिलीस्तीन के रुख पर इजरायली सेना और समाज को हतोत्साहित करके विभाजित करना.
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जनरल कासिम सुलेमानी ईरान के लिए इतने अहम क्यों थे?
ईरान की स्पेशल आर्मी कुद्स सेना के मुखिया के तौर पर कासिम सुलेमानी को पूरी दुनिया पहचान मिली थी. साल 1998 में उनको इस आर्मी का प्रमुख बनाया गया था. उन्होंने लेबनान में हिजबुल्लाह, सीरिया में असद और इराक में शिया समर्थित मिलिशिया ग्रुप के साथ ईरान की करीबी बढ़ाने में कामयाब पाई थी. उनको सीरिया और इराक की लड़ाइयों में अहम भूमिका के लिए खास तौर पर जाना जाता था. मीडिल ईस्ट में ईरान के साथ सऊदी अरब और इजरायल के बीच वर्चस्व की जंग से हर कोई वाकिफ है. अमेरिका भी ईरान के खिलाफ रहा है. इन सबके बावजूद मीडिल ईस्ट में ईरान के प्रभाव बढ़ाने में जनरल सुलेमानी ने अहम भूमिका निभाई है. यही वजह है कि वो अमेरिका, इजरायल और सऊदी अरब की नजरों में चढ़ गए थे. उनको मारने के लिए कई बार कोशिश हुई. वो बचते रहे, लेकिन जनवरी 2020 में बच नहीं पाए.
हमास पर इजरायली हमले पर अमेरिका और सऊदी का रुख
अमेरिका और यूरोपीय देश इजरायल को अब तक गाजा पर सीधे हमले से रोके हुए हैं. ये देश चाहते हैं कि पहले बंधकों की रिहाई सुनिश्चित हो जाए. हमास की कैद में अब तक 250 से ज्यादा बंधक है जिनमें इजरायल के साथ साथ कई देशों के लोग शामिल हैं. इस बीच दो अमेरिकी बंधकों को हमास ने रिहा किया है, लेकिन इजरायल को हमास के इरादे पर शक है. इजरायल सेना के प्रवक्ता डेनियल हगारी ने कहा कि दो बंधकों को रिहा करके हमास दुनिया के सामने अपनी मानवता वाली छवि पेश कर रहा है, लेकिन सच ये है कि उसने बच्चों महिलाओं तक को बंधक बना रखा है. मानवता के प्रति क्रूरता कर रहा है. अमेरिका इस जंग में इजरायल के साथ है, लेकिन वो जमीन पर लड़ाई के पक्ष में नहीं है. दूसरी तरफ सऊदी अरब भी गाजा पर हमलों का विरोध कर रहा है.