कतर ने गलती कर दी… नेवी ऑफिसर्स के लिए किसी भी हद तक जा सकती है मोदी सरकार!
चीन और पाकिस्तान के भारत के प्रति द्वेष के पीछे क्षेत्रीय प्रभुत्व और सीमा की लड़ाई है. कनाडा की भारत से तकरार ताजी ताजी है, और उसका कारण कनाडा की घरेलू राजनीति ज्यादा है.
लेकिन, इन देशों के मुकाबले कतर का मामला बहुत दिलचस्प और उतना ही पेंचीदा है. कई बुनियादी जरूरतों को पूरा करने के लिए भारत पर निर्भर खाड़ी का यह छोटा सा देश भारत को चुनौती देना चाहता है. दुनिया के मुसलमानों के बीच नया मसीहा बनने की ख्वाहिश में यह देश अकसर नए-नए स्टंट करते देखा जा सकता है. नुपुर शर्मा मामले में खुराफाती सक्रियता दिखाकर यह देश भारत सरकार को एकबार तो बैकफुट पर ला चुका है. लेकिन, भारतीय नौसेना के 8 पूर्व अफसरों को मौत की सजा सुनाकर कतर ने रांग नंबर डायल कर दिया है. कम से कम उसने यह फैसला सुनाने के लिए बहुत ही गलत समय चुना है. कम से कम 5 सीधे कारण दिखाई दे रहे हैं, जिनके चलते मोदी सरकार इस मामले में आर-पार की जंग छेड़ सकती है. और कतर को हमेशा याद रखने वाला सबक दे सकती है.
1. सेना के सम्मान का मामला है:
जो सेना दुनिया में अपने प्रोफेशनलिज्म, इमानदारी और अनुशासन के लिए जानी जाती है, उसके अफसरों पर जासूस का आरोप बहुत बड़ी बात है. और कतर के मामले में तो बात सजा-ए-मौत के फैसले तक पहुंच गई है. नौसेना के जिन पूर्व अफसरों को यह सजा सुनाई गई है, वे भारत के सबसे आधुनिक युद्धपोतों का नेतृत्व कर चुके हैं. देश के सर्वोच्च पुरस्कारों से सम्मानित हो चुके हैं. ऐसे प्रतिष्ठित अफसरों को जासूसी जैसे आरोप में मनमाने ढंग से सजा सुना देना भारत के लिए नाक का सवाल है.
2. प्रवासी भारतीयों का आत्मविश्वास दांव पर है:
मोदी सरकार के दौर में विदेशों में रह रहे भारतीय समुदाय पर खास फोकस रखा गया है. भारत की सॉफ्ट पावर को आगे बढ़ाने में यह समुदाय खासा सक्रिय रहा है. जिन पूर्व नौसेना अधिकारियों को मौत की सजा सुनाई गई है, उनमें से एक कमांडर पूर्णेंदु तिवारी को 2019 में प्रवासी भारतीय सम्मान से भी नवाजा गया था, जो कि विदेशों में रहने वाले भारतीयों को दिया जाने वाला सर्वोच्च सम्मान है. ऐसे सम्मानित लोगों को यदि कठघरे में खड़ा किया गया है, तो यह भारत के लिए चिंता की बात है.
3. चुनाव के चलते मोदी सरकार पर राजनीतिक दबाव है:
भाजपा समर्थकों ने प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी की छवि ’56 की इंच की छाती’ वाली बना दी है. कम से कम विदेशी चुनौतियों से अब तक वे कामयाबी से निपटते भी आए हैं. पिछले लोकसभा चुनाव से ठीक पहले हुए पुलवामा हमले के बाद उन्होंने बालाकोट सर्जिकल स्ट्राइक करवाकर जो माहौल बनाया, उससे उन्हें चुनावी फायदा भी मिला. लेकिन, भारतीय नौसेना के पूर्व अफसरों को मौत की सजा सुनाकर कतर ने निश्चित ही मोदी सरकार की नींद उड़ाई है. यदि कतर अपने फैसले पर कायम रहता है तो यह भाजपा सरकार और नरेंद्र मोदी की ग्लोबल लीडर वाली छवि को नुकसान पहुंचाएगा. कम से कम चुनावी साल में मोदी सरकार कोई रिस्क नहीं लेगी. यदि ये अफसर रिहा होकर देश लौट आए तो इसका फायदा है, और यदि नहीं आए तो उतना ही नुकसान भी.
4. विदेश नीति की साख का मामला है:
मोदी सरकार के दौर में भारत की मिडिल ईस्ट पॉलिसी बहुत चर्चा में रही है. आमतौर पर सभी खाड़ी देशों से भारत के मैत्रीपूर्ण संबंध रहे हैं. इजरायल से संबंध नई ऊंचाई तक ले जाने के बावजूद मोदी सरकार को खाड़ी के कई इस्लामिक देशों ने अपने-अपने सर्वोच्च सम्मानों से नवाजा. इन सबके बीच भारत के प्रति कतर का रवैया चिंताजनक रहा है. अरब देशों की पॉलिटिक्स में भी कतर को लेकर उहापोह की स्थिति रही है. इजरायल-गाजा युद्ध में कतर परदे के पीछे से जिस तरह हमास का समर्थन कर रहा है, उसकी आलोचना दुनिया सहित भारत में भी हो रही है. इन तमाम घटनाक्रम के बीच नौसेना अधिकारियों के मामले में कतर को साधना भारतीय विदेश मंत्रालय के लिए अग्नि-परीक्षा जैसा होगा.
5. कतर की जुर्रत को काबू में रखना है:
कतर हमेशा से भारत के आंतरिक मामलों में गिद्ध दृष्टि रखता रहा है. तालिबान और हमास जैसे संगठनों की पनाहगाह यह देश मिडिल ईस्ट और साउथ एशिया में अपना प्रभुत्व जमाए रखने के लिए हर तरह के हथकंडे अपनाने के लिए बदनाम है. कतर की इन सभी खुराफातों को उजागर करने का यही समय है. इजरायल-गाजा युद्ध में कतर की भूमिका पर दुनिया पहले ही सवाल खड़े कर रही है. अब इस मामले में भारत को भी मौका मिल गया है. कतर चाहता है कि भारत उसी तरह बैकफुट पर आ जाए, जैसा वह नुपुर शर्मा के मामले में आ गया था. लेकिन, इस बार उसका दांव उलटा पड़ता दिख रहा है. जासूसी के मनमाने आरोप और मौत का फैसला सुनाकर कतर ने जिस तरह भारतीय नौसेना अधिकारियों को अपनी कैद में रखा हुआ है, वह फिरौती की खातिर अपहरण करने की वारदात से ज्यादा कुछ नहीं है.