केजरीवाल की मुश्किलों से बीजेपी और INDIA गठबंधन दोनों का फायदा है
आम आदमी पार्टी में जैसे ही किसी नेता को किसी जांच एजेंसी का नोटिस मिलता है, सारे ही मिल कर गिरफ्तारी की आशंका जताने लगते हैं. दिल्ली शराब नीति घोटाला केस में अरविंद केजरीवाल को प्रवर्तन निदेशालय ने पूछताछ के लिए 2 नवंबर को तलब किया है – लिहाजा अब उनकी बारी है, ऐसी आशंका AAP नेता भी वैसे ही जता रहे हैं जैसे कुछ बीजेपी नेता और सोशल मीडिया पर उनके समर्थक दावा कर रहे हैं. अगर अरविंद केजरीवाल की गिरफ्तारी नहीं भी हो, तो भी वो विरोधियों और उनके समर्थकों के निशाने पर तो आ ही चुके हैं – और सिर्फ कपिल मिश्रा ही नहीं, दिल्ली बीजेपी के तमाम नेता उछल उछल कर अरविंद केजरीवाल का नाम लेते हुए चोर चोर चिल्लाने लगे हैं.
बीजेपी के साथ साथ अरविंद केजरीवाल के मुश्किलों में फंस जाने से INDIA गठबंधन को भी फायदा हो सकता है. दिल्ली सेवा बिल को लेकर विपक्षी दलों में जैसी एकजुटता पहले देखने को मिली है, मान कर चलना चाहिये कि फिर से वैसी ही एकता फिर से देखी जा सकती है.
केजरीवाल की गिरफ्तारी जरूरी तो नहीं
संयोग से अरविंद केजरीवाल को ईडी का नोटिस भी उसी दिन मिला है, जब सुप्रीम कोर्ट में उनके सबसे करीबी सहयोगी और दिल्ली के डिप्टी सीएम रहे मनीष सिसोदिया की जमानत खारिज हुई है. सुप्रीम कोर्ट ने जमानत खारिज करने का आधार 338 करोड़ रुपये के लेनदेन में मनीष सिसोदिया की भूमिका संदिग्ध पायी है. मनीष सिसोदिया अब जमानत की अपील ट्रायल में देर होने की सूरत में कर सकते हैं, तीन महीने में. मनीष सिसोदिया के साथ साथ आम आदमी पार्टी सांसद संजय सिंह और सत्येंद्र जैन पहले से ही मनी लॉन्ड्रिंग के मामलों में जेल में बंद हैं. अप्रैल, 2023 में सीबीआई दफ्तर बुला कर दिल्ली के मुख्यमंत्री अरविंद केजरीवाल से शराब घोटाले में ही करीब साढ़े 9 घंटे तक पूछताछ की गयी थी. पूछताछ के बाद CBI दफ्तर से निकल कर अरविंद केजरीवाल ने कहा था, “सीबीआई ने जितने सवाल पूछे मैंने सभी के जवाब दिये… हमारे पास छिपाने के लिए कुछ नहीं है… ये पूरा का पूरा घोटाला झूठ है, फर्जी है और गंदी राजनीति से प्रेरित है.’ केजरीवाल ने ये भी बताया था कि सीबीआई अफसरों ने उनसे 56 सवाल पूछे थे.
ईडी अधिकारियों के सामने अरविंद केजरीवाल की पेशी ऐसे वक्त हो रही है, जब शराब घोटाला केस में AAP को भी एक पार्टी बनाने की तैयारी चल रही है. AAP का संयोजक होने के नाते, जाहिर है, सभी सही और गलत फैसलों की जिम्मेदारी तो अरविंद केजरीवाल की ही बनती है. सुप्रीम कोर्ट में सवाल उठाये जाने पर ईडी के वकील ने अपने जवाब में कहा था जांच एजेंसी AAP को केस में पार्टी बनाने पर विचार कर रही है. ये सवाल मनीष सिसोदिया की जमानत पर सुनवाई के दौरान उठाया गया था. अरविंद केजरीवाल से सीबीआई तो पूछताछ कर चुकी है, लेकिन ईडी ने पहली बार समन भेजा है. वैसे फरवरी, 2023 में केजरीवाल के पीए बिभव कुमार और करीबी नेता जैस्मिन शाह से ईडी के अधिकारी पूछताछ कर चुके हैं – और उसी दौरान 26 फरवरी, 2023 को मनीष सिसोदिया को गिरफ्तार किया गया था. दिल्ली के मुख्यमंत्री के सरकारी आवास के नवीनीकरण में हुई गड़बड़ी की भी सीबीआई जांच चल ही रही है.
मनीष सिसोदिया और संजय सिंह को नोटिस मिलने के बाद दोनों नेताओं की गिरफ्तारी की आशंका सही साबित हो चुकी है, लेकिन अरविंद केजरीवाल के साथ भी बिलकुल वैसा ही होगा कोई जरूरी नहीं है. प्रवर्तन निदेशालय ने ऐसे ही नोटिस भेज कर पूछताछ राहुल गांधी और सोनिया गांधी से भी किया है, लेकिन अभी तक गिरफ्तारी की नौबत नहीं आयी है.
केजरीवाल कमजोर, लेकिन विपक्ष मजबूत होगा
ज्यादा दिन नहीं हुए. दिल्ली सेवा बिल ताजातरीन उदाहरण है. विपक्षी खेमे के कभी दूर कभी पास दिखाई पड़ने वाले अरविंद केजरीवाल सरेंडर की मुद्रा में देखे गये थे. साथी नेताओं के साथ जगह जगह जाकर विपक्षी खेमे के नेताओं से मिल रहे थे, और संसद में दिल्ली सेवा बिल के विरोध की अपील कर रहे थे. अरविंद केजरीवाल के इस कदम का फायदा भी हुआ. जल्दी ही ज्यादातर विपक्षी दलों के नेता अरविंद केजरीवाल के सपोर्ट को तैयार हो गये, सिर्फ कांग्रेस को छोड़ कर.
दिल्ली सेवा बिल पर बीजेपी के बहुमत के आगे एकजुट विपक्ष भी कुछ नहीं कर पाया. कुछ संभव भी नहीं था. संसद में लाये गये दिल्ली सेवा बिल का ये असर जरूर हुआ कि केजरीवाल झुके भी, और झुकाये भी. झुके इस मामले में कि वो कांग्रेस की अगुवाई वाले गठबंधन के साथ जाने को तैयार हो गये, और झुकाये ये कि जब तक कांग्रेस से खुल कर आने के लिए तैयार नहीं करा लिये – INDIA गठबंधन के साथ खड़े होने को तैयार नहीं हुए.
अरविंद केजरीवाल ज्यादातर अलग राह पकड़ कर ही राजनीति करते आये हैं. हिंदुत्व से जुड़े मुद्दों पर वो जरूर बीजेपी के वोट बैंक में घुसपैठ करते नजर आये हैं, लेकिन सर्जिकल स्ट्राइक जैसे मसले पर उनका स्टैंड ज्यादा ही अलग नजर आया है – निकल कर तो यही आया कि वो मोदी सरकार से सर्जिकल स्ट्राइक के सबूत मांग रहे थे. विपक्ष से दूरी बनाकर चलने के बावजूद राष्ट्रपति और उपराष्ट्रपति चुनाव में विरोधी पक्ष के उम्मीदवार को ही वोट दिया है.