रुला देगी ‘छोटा भीम’ के पिता के त्याग की कहानी, लाखों की नौकरी छोड़ी, मुंबई में भीख से…
फिल्मों में करियर बनाने के लिए मुंबई जैसे शहर में हर रोज हजारों लोग आते हैं। ऐसे बहुत सारे एक्टर हैं, जिन्होंने अपनी अच्छी खासी नौकरी छोड़कर एक्टिंग की राह चुनी, लेकिन बेटे को एक्टर बनाने के लिए सरकारी नौकरी छोड़कर मुंबई जैसे शहर में बहुत ही कम मां-बाप आते हैं। बाल कलाकार यज्ञ भसीन के पिता दीपक भसीन उत्तराखंड उच्च न्यायालय, नैनीताल में अनुभाग अधिकारी थे और उनकी मां सोनिया भसीन अपना ब्यूटी सैलून चलाती थीं। लेकिन अपने बच्चे का सपना पूरा करने के लिए पूरा परिवार नैनीताल छोड़कर मुंबई में साल 2017 में शिफ्ट हो गया। इस बार के ‘अपना अड्डा’ में दीपक भसीन भी शामिल हुए और उन्होंने इस मौके पर मौजूद सभी कलाकारों के सामने अपनी संघर्ष कथा सुनाई तो वहां उपस्थित सारे लोग भावुक हो गए।
बाल कलाकार यज्ञ भसीन को बचपन से ही हॉलीवुड की फिल्में देखने का बहुत शौक था। दीपक भसीन कहते हैं, ‘जब मैं ऑफिस जाता था तो हर रोज मेरी बेटा बोलता था कि मुझे एक्टर बनना है। उस समय वह हॉलीवुड की फिल्मों के अलावा ‘शक्तिमान’ और ‘छोटा भीम’ देखा करता था। मैंने तीन चार दिन तक उसकी बातों को इतनी गंभीरता से नहीं लिया। लेकिन जब रोज बोलने लगा तो मुझे लगा कि इतनी कम उम्र में कितनी बड़ी बात बोल रहा है। उस समय वह नैनीताल के उमा लवली पब्लिक स्कूल में तीसरी कक्षा में पढ़ रहा था। मुझे लगा कि शायद यह ईश्वर की मर्जी है, जो इस बच्चे के माध्यम से मुझे कुछ संकेत दे रहे हैं।’
यज्ञ भसीन को एक्टर बनाने के फैसले में उनकी मां सोनिया भसीन का भी बहुत बड़ा योगदान रहा है। दीपक भसीन कहते हैं, ‘मैंने सोनिया से इस बात की चर्चा की, पत्नी कहा कि आपका जो भी फैसला हो हम आपके साथ हैं। मैंने बेटे से पूछा कि एक्टर बनना चाहते हो तो इसके लिए हमें क्या करना पड़ेगा ? बेटे ने कहा, ‘हमे एलए (लॉस एंजेलिस) जाना पड़ेगा। लॉस एंजेलिस के बारे में मुझे नहीं पता था। मैंने कहा कि कोई और तरीका बताओ। बेटे ने कहा कि मुंबई शिफ्ट होना पड़ेगा। हमने सोच लिया कि नौकरी छोड़कर बेटे के साथ मुंबई शिफ्ट हो जाएंगे। मेरी सैलरी और पत्नी का इनकम मिलाकर महीने का दो लाख रुपए महीने के हो जाते थे। उस समय यह फैसला लेना बहुत मुश्किल था।’
दीपक भसीन अपनी पत्नी और बेटे के साथ जून 2017 में मुंबई शिफ्ट हो गए। वह कहते हैं, ‘मुंबई आने के बाद मैंने भायंदर में किराए पर कमरा ले लिया और भायंदर में ही सेंट एग्नेस इंग्लिश हाई स्कूल में बेटे का एडमिशन करवा दिया। दोपहर में स्कूल खत्म होने के बाद लोकल ट्रेन में बेटे को लेकर अंधेरी ऑडिशन दिलाने आता था। उसने खूब ऑडिशन दिए। भायंदर से बेटे को रोज अंधेरी लेकर आने में बहुत परेशानी होती है, इसलिए बाद में अंधेरी चार बंगला म्हाडा के एक चॉल में शिफ्ट हो गया। लेकिन मैंने स्कूल नहीं बदला। स्कूल के प्रिंसिपल ने इतनी सहूलियत दे दी थी कि जब भी हफ्ते में समय मिले तो बेटे को लेकर स्कूल में आ जाना।’