कन्नौज में सिर्फ दो ही महिलाएं बनीं सांसद, दोनों के नाम अनोखा रिकॉर्ड.
इत्रनगरी के करीब छह दशक के संसदीय इतिहास में सिर्फ दो ही बार ऐसा मौका आया है, जब यहां की अवाम ने महिला को अपनी रहनुमाई करने के लिए दिल्ली भेजा है। दोनों के ही नाम अनोखा रिकॉर्ड है। शीला दीक्षित के नाम कन्नौज की पहली महिला सांसद होने का रिकॉर्ड है तो उनके करीब तीन दशक बाद यहां से डिंपल यादव ने निर्विरोध निर्वाचित होकर नया रिकॉर्ड बनाया था। इन दोनों के अलावा किसी और महिला को चुनावी कामयाबी नहीं मिल सकी है।
कन्नौज संसदीय सीट पर महिलाओं को मौका देने में बड़ी पार्टियों ने बड़ा दिल नहीं दिखाया है। यहां से महिला उम्मीदवार कम ही सामने आई हैं। वर्ष 1967 में गठित हुई कन्नौज संसदीय सीट पर 16 बार चुनाव हो चुका है। इस दौरान यहां के बैलेट पेपर और ईवीएम पर आठ बार किसी महिला उम्मीदवार का नाम ही नहीं रहा। जिन आठ चुनाव में महिला उम्मीदवारों का नाम रहा, उसमें तीन बार ही उन्हें कामयाबी मिली है। सिर्फ दो बार ही महिला सांसद चुनी गई हैं। पहली महिला सांसद शीला दीक्षित कन्नौज की पांचवीं सांसद चुनी गई थीं। पहले के चार चुनाव में महिला उम्मीदवार नहीं थीं। 1989 में शीला दीक्षित को फिर मौका मिला, लेकिन कामयाबी नहीं मिली। उसके बाद से महिला उम्मीदवारी न के बराबर ही रही। वर्ष 2012 के उपचुनाव में डिंपल यादव के रूप में दूसरी महिला को सांसद बनने का मौका मिला। उन्होंने लगातार दो चुनाव जीता।
जीतने पर मिला मौका, हारने पर बदली राह
चाहे शीला दीक्षित हों या डिंपल यादव, पहली बार जीतने पर दूसरी बार मौका तो मिला, लेकिन आगे कामयाब नहीं होने पर दोनों ने ही अपना सियासी ठिकाना बदल दिया। वर्ष 1984 में जीतने के बाद शीला दीक्षित फिर से 1989 में उम्मीदवार थीं, लेकिन हार गईं। इसके बाद वह कभी यहां से चुनाव नहीं लड़ीं। वर्ष 1996 में अपनी ससुराल उन्नाव से जरूर कोशिश की, वहां भी कामयाबी नहीं मिली। उसके बाद दिल्ली की सियासत में सक्रिय हुईं और वहां की तीन बार मुख्यमंत्री बनीं। इसी तरह वर्ष 2012 में निर्विरोध सांसद बनने का रिकॉर्ड अपने नाम करने वाली डिंपल यादव को फिर से 2014 में भी कामयाबी मिली। हालांकि 2019 में उन्हें शिकस्त मिली। उसके बाद वह मैनपुरी चली गईं। मुलायम सिंह के निधन के बाद वहां हुए उपचुनाव में जीतीं। फिर से उसी सीट से उम्मीदवार भी हैं।