क्या होती है बच्चे के बहस करने की वजह? समझकर इस तरह सुधारें गलत आदत
बच्चे जैसे-जैसे बड़े होते हैं, अपना पक्ष रखना सीख जाते हैं। लेकिन पक्ष रखने की यह आदत यदि तर्कपूर्ण न होकर बहस का रूप लेने लगे तो इस पर ध्यान देना जरूरी है। तर्क करना या बहस करना अच्छा है, जब तक कि वह सकारात्मक पहलुओं पर की जाए। बच्चों में बहस करने की आदत सामान्य होती है, जो उनके मानसिक और सामाजिक विकास का हिस्सा है। सकारात्मक बहस बच्चों में आत्मनिर्भरता की भावना को जगाती है। मगर जब यह बहस नकारात्मकता की ओर बढ़े और विवाद का रूप लेने लगे तो इसे रोकना जरूरी हो जाता है, क्योंकि कई बार बहस करना बच्चों को उद्दंड भी बना देता है। इसलिए जरूरी है, समय रहते बच्चों के प्रश्नों और बहस के बीच के इस छोटे-से फर्क को समझना और उनका उचित मार्गदर्शन करना।
क्या है वजह
शारीरिक अनुपात के साथ ही समयानुसार बच्चों की तर्कशक्ति और विश्लेषणात्मक क्षमता भी विकसित होती है। वे विभिन्न मुद्दों पर सवाल उठाते हैं और उनकी गहराई में जाकर उनके उत्तर खोजने की कोशिश करते हैं। कई बार बच्चे बिना किसी कारण के ही बहस करने लगते हैं, क्योंकि वे लोगों, विशेषकर अभिभावकों का ध्यान अपनी ओर खींचना चाहते हैं, तो कभी-कभी बच्चे खुद को सही साबित करने के लिए और अपने पक्ष को मजबूत बनाने के लिए बहस करते हैं।
आपकी धारणाएं
जब बहस, बहस न रहकर विवाद और उद्दंडता का विकृत रूप लेने लगती है तो उसके पीछे कई वजहें होती हैं, जैसे बच्चे के मन में कुछ बातें गांठों का रूप ले रही हैं। वह अपनी बात कह नहीं पा रहा है और समझा नहीं पा रहा है। वहीं आपके द्वारा उसके लिए बनाई गईं कुछ धारणाएं भी उसे बहस करने पर मजबूर करती हैं, जैसे कि ‘यह तुमने ही तोड़ा होगा, तुम्हारे अलावा कर भी कौन सकता है?’ या फिर घर में कुछ भी गलत होने पर उस पर शक करना। इस स्थिति में बहस करना लाजिमी है, जो समय के साथ बच्चे के व्यवहार में शामिल हो जाती है।
मार्गदर्शन करें
आपको बच्चों की बहस को ध्यान से सुनना चाहिए। ‘तुम चुप रहो’ कहकर उनके प्रश्नों पर प्रश्नचिह्न न लगाएं। उनके हर प्रश्न का जवाब दें, जिससे वे उलझन में न रहें और कहीं और से प्रश्नों के गलत जवाब न ढूंढने लगें। उन्हें सिखाएं कि वे अपने विचारों को शांति से व्यक्त करें और दूसरों की भावनाओं को आहत न करें। साथ ही आपको बहस के दौरान उनकी भावनाओं का सम्मान करना चाहिए। ऐसा करने पर वे आपसे बहस नहीं, तर्कपूर्ण बात करेंगे।
सकारात्मक पहलू
बहस करने से बच्चों के संवाद कौशल में सुधार होता है। वे अपने विचारों को स्पष्ट और प्रभावी ढंग से व्यक्त करना सीखते हैं। इससे उनकी भाषायी क्षमता और संचार कौशल में भी वृद्धि होती है। वे विभिन्न दृष्टिकोणों से समस्याओं को देखते हैं और उन्हें हल करने के लिए नए तरीकों का उपयोग करते हैं। बहस के माध्यम से उन्हें अपने विचारों और क्षमताओं पर भरोसा होता है, जो उनके व्यक्तिगत विकास के लिए महत्वपूर्ण है।
भाव-भंगिमाओं को पढ़ें
बाल रोग विशेषज्ञ गार्गी मालगुड़ी कहती हैं, बच्चे का बहस करना उसकी तार्किक क्षमता को बढ़ाता है। इसलिए आप सहनशीलता और संवेदनशीलता के साथ बच्चे की बहस को सुनें, उसकी भाव-भंगिमाओं को पढ़ें और उसे समझने का प्रयास करें। अगर उसके चेहरे के भाव बिगड़ने लगें, नथुने फूलने लगें, आंखें फैलने लगें, हाथ कांपने लगें और सांस फूलने लगे तो समझ लीजिए कि बच्चा कहना कुछ चाहता है और कह कुछ और ही रहा है।
जब आप समझ जाएं कि वह बस बहस कर रहा है तो उसे अपनी बात कह लेने दीजिए। फिर इस बहस को रोकते हुए प्यार से उसकी परेशानियों को जानें और पूरे धैर्य के साथ उसकी बात सुनकर उसे जवाब दें, क्योंकि यह उसकी विकास यात्रा के लिए सहायक होता है। मगर बहस अगर बीमारी बन जाए तो जल्द ही इसका निदान जरूरी है। इसके लिए सलाहकार या चिकित्सक की भी मदद लेनी पड़े तो लें।