दो दशकों में उत्तर भारत के भूजल में आई 450 क्यूबिक किलोमीटर की कमी, नई रिपोर्ट ने डराया
नई दिल्ली: एक नए अध्ययन के अनुसार साल 2002 से लेकर 2021 के दौरान उत्तर भारत में लगभग 450 क्यूबिक किलोमीटर भूजल कम हुआ है। अध्ययन में दावा किया गया है कि जलवायु परिवर्तन की वजह से आने वाले वर्षों में भूजल स्तर में और भी कमी आने की आशंका है। आईआईटी गांधीनगर में सिविल इंजीनियरिंग और पृथ्वी विज्ञान के विक्रम साराभाई चेयर प्रोफेसर और प्रमुख लेखक विमल मिश्रा ने कहा कि जितना भूजल स्तर कम हुआ है, वह भारत के सबसे बड़े जलाशय इंदिरा सागर बांध की पूरी क्षमता से लगभग 37 गुना अधिक पानी है।
बारिश में भी आई कमी
हैदराबाद स्थित राष्ट्रीय भूभौतिकीय अनुसंधान संस्थान (एनजीआरआई) के शोधकर्ताओं की टीम ने अध्ययन में कहा है कि मानसून के दौरान कम बारिश और गर्म होती सर्दी से सिंचाई के लिए पानी की मांग बढ़ेगी और भूजल के रिचार्ज होने में कमी आएगी। शोधकर्ताओं का कहना है कि इससे उत्तर भारत में पहले से ही घट रहे भूजल संसाधनों पर और दबाव पड़ेगा। शोधकर्ताओं ने उपग्रह डेटा और अध्ययन के आधार पर पाया कि पूरे उत्तर भारत में, 1951-2021 के दौरान मानसून (जून से सितंबर) में वर्षा में 8.5 प्रतिशत की कमी आई है। साथ ही अध्ययन में पता चला है कि इसी अवधि में देश में सर्दियों का मौसम 0.3 डिग्री सेल्सियस अधिक गर्म हो गया है।
अध्ययन में खुलासा- भूजल संसाधनों पर दबाव और बढ़ेगा
अध्ययन में पता चला है कि शुष्क मानसून के कारण, वर्षा की कमी के चलते भूजल पर निर्भरता बढ़ी है, साथ ही गर्म सर्दियों के कारण मिट्टी शुष्क हो रही है, जिससे फिर से अधिक सिंचाई की आवश्यकता पड़ रही है। अध्ययन में बताया गया है कि पृथ्वी के गर्म होने के साथ भूजल में कमी जारी रह सकती है, क्योंकि भले ही जलवायु परिवर्तन के कारण अधिक वर्षा होती है, लेकिन इसका अधिकांश हिस्सा चरम घटनाओं के रूप में होने का अनुमान है, इससे भूजल रिचार्ज नहीं हो पाता है। मानसून में बारिश की कमी और उसके बाद सर्दियों के गर्म होने के कारण भूजल रिचार्ज में लगभग 6-12 प्रतिशत की गिरावट आने का अनुमान है।