बेसहारा मासूमों की मदद के लिए महिला ने छोड़ी नौकरी, 3000 बच्चों को दिया आश्रय
केरल के कोझिकोड में रहने वाली अंजना राजगोपाल की पढ़ाई लिखाई कर्नाटक के बेलारी में हुई। उनके पांच भाई बहन हैं, जिसमें तीनों भाई छोटे और दो बहनें बड़ी हैं। बाद में उनका पूरा परिवार बेलारी से दिल्ली शिफ्ट हो गया। बड़ी बहनों की शादी और मां की तबीयत ठीक न होने के कारण उनके ऊपर कई जिम्मेदारियां आ गईं। उन्होंने नौकरी करना शुरू किया और एक समाचार पत्र के स्टोर्स डिपार्टमेंट में काम करने लगीं।
अंजना में दया भाव
महज 10 वर्ष का आयु में अंजना गरीब बच्चों की हालत देख दुखी हो जाया करती थीं। जब उनकी नजर ऐसे बच्चों पर पड़ती जो नाच गाकर पैसे मांगने आते और भूख-प्यास से बिलखते तो वह विचलित हो जाया करती थीं।
एक बार दफ्तर जाते समय अंजना ने व्यक्ति को एक विकलांग बच्चे को पीटते देखा, जिसका अंजना ने विरोध किया। उन्हें पता चला कि बच्चे का कोई नहीं था। वह बच्चे को अपने साथ घर ले आईं। बच्चे का नाम रजत था, जिसे उन्होंने पढ़ाया लिखाया। आज वह 10 साल का बच्चा 45 की उम्र का हो गया है।
मां का देहांत
जब अंजना 28 वर्ष की हुईं तो उनकी मां का निधन हो गया। बाद में पिता जी भी चल बसे। इसके बाद अंजना ने अपना जीवन ऐसे ही असहाय बच्चों को समर्पित कर दिया और दो दिव्यांग बच्चों को शरण दी। धीरे-धीरे संख्या बढ़ने लगी। शुरू में वह अपने वेतन से बच्चों का पालन पोषण करती थीं लेकिन जब बच्चे ज्यादा आने लगे तो उनकी सहेलियों और एक संस्था ने भी मदद की।
बाद में अंजना ने ‘साई कृपा’ नाम से संस्था शुरुआत की। बच्चों को संभालने में मुश्किलें आईं क्योंकि वो नौकरी भी करती थीं। बच्चों की देखरेख के लिए उन्होंने नौकरी छोड़ दी। दोस्तों और परिवार के लोगों ने कहां कि अनाथ बच्चों के लिए नौकरी क्यों छोड़ रही लेकिन दृढ़ संकल्प ने उन्हें पीछे हटने नहीं दिया। उन्होंने चंदा मांगना शुरू किया। चैरिटी शोज किए और फंड जुटाया। एक फाउंडेशन ने संस्था को पूरी बिल्डिंग खरीदकर दी।
बाल कुटीर में 3 हजार बच्चे
उनके बाल कुटीर में तीन हजार से अधिक बच्चों को आश्रय मिला, जहां नवजात से 10-12 साल तक के बच्चे आते हैं। अस्पताल में अगर कोई बच्चा छोड़ जाता है तो उसे भी अस्पताल प्रशासन अंजना के बाल कुटीर में दे जाते हैं। बच्चों को सारा लालन पालन सेंटर में होता है और उनके लिए परिवार खोजने की कोशिश की जाती है।
बच्चों की शिक्षा के लिए खोला स्कूल
कई स्कूलों ने बाल कुटीर के बच्चों को दाखिला नहीं लिया तो नांग्ला वाजिदपुर में श्री साईं शिक्षा संस्थान नाम से स्कूल की शुरुआत की गई, जहां बाल कुटीर के बच्चों के साथ ही गांव के गरीब बच्चे भी पढ़ते हैं। इसके अलावा नोएडा में भी श्री साईं बाल संसार स्कूल खोला गया, जहां भीख मांगने वाले बच्चों को पढ़ाया जाता है। साथ ही इसकी एक शाखा वात्सल्य वाटिका की शुरुआत की गई, जो स्पेशल चाइल्ड के लिए है।