आगरा में पुरानी है दाल-बाटी की परंपरा, बगीचियों में आयोजनों की रहती थी धूम; अब दुकानों तक सीमित
आगरा: उत्तर प्रदेश के आगरा में श्रावम मास में दाल-बाटी की परंपरा पुरानी है। यहां बगीचियों में दालबाटी आयोजनों की धूम रहती थी। अब यह शहर की कुछ दुकानों तक ही सीमित रह गई है। श्रावण मास में शिव मेलों, झूला समारोहों की धूम मच जाती है। तीन दशक पूर्व श्रावण मास में दाल-बाटियों की भी बहार आ जाती थी। शहर की बगीचियों में दाल-बाटी के बड़े आयोजन होते थे।
आवास विकास निवासी राजेश अग्रवाल ने बताया कि उस समय मैं 21 वर्ष का था, सावन शुरू होते ही दाल-बाटी के आयोजन होते थे। यह आयोजन जन्माष्टमी तक होते थे। बगीचियों में बाटी बनाने के बर्तन, भांग, ठंडाई रहती थी। दाल-बाटी बनाने वाले हलवाई होते थे। सुबह पकौड़े और ठंडाई और शाम को दाल-बाटी के आयोजन शुरू हो जाते थे।
बगीचियों में होते थे आयोजन
आगरा में दाल बाटी का आयोजन मुंबई की बगीची, सूरज भान की बगीची, हलवाई की बगीची इत्यादि जगह बड़े स्तर होते थे। घर के पुरुष ही इस आयोजन में जाते थे। – राहुल गौतम, दयालबाग
उपलों पर सिकती थी बाटी
सावन शुरू होते ही दाल-बाटी बनाना शुरू कर देते हैं। उपलों पर सिकी बाटी की जगह अब तेल में फ्राई बाटी चलन में है। अब आलू, पनीर, ड्राई फ्रूट्स की बाटी लोगों को अधिक पसंद आती है। – शिशिर भगत, मिष्ठान भंडार संचालक
पुराने शहर के लोग आज भी खाते
दाल बाटी की परंपरा बहुत ही पुरानी है। आज भी पुराने शहर के लोग इसे खाना पसंद करते और उन्हीं के लिए वैसी दाल-बाटी बनाने का प्रयास करते हैं। – उमेश गुप्ता, मिष्ठान भंडार संचालक
राजस्थान से पहुंची आगरा
कहते हैं दाल-बाटी का चलन राजस्थान के लोहा कूटने वाले खानाबदोशों ने शुरू किया था। जहां उनके काफिले रुकते, वहां आटे को गूंथ कर गोल लोई को धधकते अंगारों में रख सेक लेते थे। प्याज आदि के साथ उसे खाते थे। बाटी की प्रथा दाल के साथ संपन्न परिवारों में पनपती गई। जब भी आगरा से राजस्थान के राजा-महाराजा गुजरते तो धौलपुर हाउस, जयपुर हाउस आदि आरामगाहों में रुकते और यहां भी दाल-बाटियों का आनंद लिया जाता था। इससे यहां भी दाल-बाटी की शुरुआत हो गई।