आप खुद ही तो नहीं पहुंचा रहे हैं मस्तिष्क को नुकसान? बहुत हानिकारक हैं ये आदतें
मस्तिष्क हमारे शरीर का ‘मास्टर’ हिस्सा है। शरीर के सभी कार्यों के संचालन, भावनात्मक नियंत्रण के साथ इसकी बड़ी महत्वपूर्ण भूमिका होती है। आप क्या सोचते हैं, क्या महसूस करते हैं, आप कैसे सीखते और चीजों को याद रखते हैं, आप कैसे चलते और बात करते हैं ये सभी चीजें मस्तिष्क द्वारा ही नियंत्रित और संचालित की जाती है। मसलन, मस्तिष्क को शरीर का सेंट्रल कंप्यूटर कहा जा सकता है जो शरीर के सभी कार्यों को नियंत्रित करता है।
इससे स्पष्ट होता है कि शरीर को स्वस्थ रखने और बेहतर तरीके से काम करते रहने के लिए मस्तिष्क का फिट रहना सबसे जरूरी है। हालांकि हमारी दिनचर्या की कुछ खराब आदतों और आहार में गड़बड़ी के कारण मस्तिष्क से संबंधित कई तरह की समस्याएं बढ़ती जा रही हैं।
इन्हीं को ध्यान में रखते हुए विभिन्न न्यूरोलॉजिकल स्वास्थ्य विषयों पर सार्वजनिक जागरूकता बढ़ाने और मस्तिष्क को स्वस्थ रखने के बारे में लोगों को शिक्षित करने के उद्देश्य से हर साल 22 जुलाई को विश्व मस्तिष्क दिवस मनाया जाता है।
मस्तिष्क विकारों का बढ़ता जोखिम
अंतरराष्ट्रीय स्वास्थ्य संस्थाएं दुनियाभर में बढ़ती मस्तिष्क विकारों को लेकर काफी चिंतित हैं। विशेषज्ञ कहते हैं, जलवायु परिवर्तन, दिनचर्या में गड़बड़ी सहित कई कारक मस्तिष्क के लिए दिक्कतें बढ़ाती जा रही हैं। बढ़ते तापमान, प्रदूषण जैसी पर्यावरणीय और धूम्रपान, शारीरिक निष्क्रियता जैसी आदतों के कारण स्ट्रोक, माइग्रेन, मिर्गी, मल्टीपल स्केलेरोसिस, सिजोफ्रेनिया, अल्जाइमर रोग और पार्किंसंस जैसी दिक्कतें पहले के तुलना में काफी आम हो गई हैं। यहां तक कि कम उम्र के लोग भी अब इन रोगों के शिकार हो रहे हैं।
आइए जानते हैं कि हमारी कौन सी आदतें मस्तिष्क को नुकसान पहुंचा रही हैं जिनमें तुरंत सुधार किया जाना जरूरी है?
बहुत ज्यादा बैठे रहना नुकसानदायक
जॉन्स हॉपकिंस की रिपोर्ट के मुताबिक औसत वयस्क प्रतिदिन साढ़े छह घंटे बैठा रहता है, और कुर्सी पर बैठे रहने का यह सारा समय मस्तिष्क पर बहुत बुरा असर डालता है। साल 2018 में प्रकाशित एक अध्ययन में पाया गया कि बहुत ज्यादा देर तक बैठे रहने की आदत मस्तिष्क के उस हिस्से में बदलाव का कारण बनती है जो याददाश्त के लिए जरूरी है।
शोधकर्ताओं ने 45 से 75 वर्ष की आयु के कुछ प्रतिभागियों के एमआरआई में पाया कि ज्यादा बैठे रहने वाले लोगों के ब्रेन का मीडियल टेम्पोरल लोब (एमटीएल) काफी पतला हो गया था। एमटीएल मस्तिष्क का वह हिस्सा है जो नई यादें बनाता है। इस बदलाव के कारण संज्ञानात्मक गिरावट और डिमेंशिया का जोखिम बढ़ सकता है।
नींद पूरी नहीं होती है तो सावधान
सेंटर फॉर डिजीज कंट्रोल एंड प्रिवेंशन (सीडीसी) ने एक रिपोर्ट में बताया दुनियाभर में एक तिहाई वयस्कों को रोजाना सात से आठ घंटे की नींद नहीं मिल पाती है। इससे संबंधित एक शोध में पाया गया कि जो लोग कम सोते हैं उनमें मस्तिष्क विकारों की समस्या अधिक देखी जाती है। इससे संज्ञानात्मक कौशल- जैसे कि याददाश्त, तर्क और समस्या के समाधान की ताकत भी कम हो जाती है। लंबे समय तक नींद पूरी न होने से कई मानसिक रोगों का जोखिम भी बढ़ जाता है।
गड़बड़ खान-पान का असर
आपका आहार भी मस्तिष्क के स्वास्थ्य में महत्वपूर्ण भूमिका निभाता है। अधिक चीनी का सेवन मस्तिष्क के स्मृति केंद्र हिप्पोकैम्पस को नकारात्मक रूप से प्रभावित कर सकता है। ब्रेड, बिस्किट और पैक्ड जूस जैसे अधिक चीनी वाले खाद्य और पेय पदार्थों से बचें। इसके अतिरिक्त, तले हुए खाद्य पदार्थों और शराब से भी मस्तिष्क की कार्यक्षमता प्रभावित होती है। आहार में नमक की मात्रा अधिक होने से ब्लड प्रेशर बढ़ने और ब्रेन स्ट्रोक जैसी जानलेवा समस्याओं का भी जोखिम रहता है।