‘बड़ी संख्या में चेक बाउंस मामलों का लंबित रहना गंभीर चिंता का विषय’, सुप्रीम कोर्ट की टिप्पणी
नई दिल्ली: सर्वोच्च न्यायालय ने शुक्रवार को चेक बाउंस के कई मामले लंबित रहने पर गंभीर चिंता जताई। शीर्ष अदालत ने कहा कि यदि पक्षकार तैयार हैं तो अदालतों को परक्राम्य लिखत अधिनियम (निगोशिएबल इंस्ट्रुमेंट्स एक्ट) के तहत उन्हें समझौता करने को प्रोत्साहित करना चाहिए।
न्यायमूर्ति सुधांशु धूलिया और न्यायमूर्ति अहसानुद्दीन अमानुल्लाह की पीठ ने चेक बाउंस के मामले में पी. कुमारस्वामी नाम के एक व्यक्ति की दोषसिद्धि को रद्द किया। अदालत ने इस बात पर गौर किया कि पक्षकारों ने एक समझौता किया था और शिकायतकर्ता को 5.25 लाख रुपये का भुगतान किया गया था।
‘चेक बाउंस के लंबित मामले चिंता का विषय’
पीठ ने अपने 11 जुलाई के आदेश में कहा, “अदालतों में बड़ी संख्या में चेक बाउंस से जुड़े मामले लंबित हैं, जो हमारी न्यायिक प्रणाली के लिए गंभीर चिंता का विषय है।” इसने आगे कहा कि ऐसे मामलों में प्रतिपूरक पहलू को दंडात्मक पहलू पर प्राथमिकता दी जाएगी। अदालतों को परक्राम्य लिखत अधिनियम के तहत समझौतों को प्रोत्साहित करना चाहिए, अगर पक्षकार ऐसा करने के इच्छुक हैं।” शीर्ष अदालत ने कहा कि यह याद रखना होगा कि चेक बाउंस होना एक नियामकीय अपराध है, जिसे केवल जनहित में ध्यान रखते हुए अपराध बनाया गया, ताकि लिखतों की विश्वसनीयता सुनिश्चित की जा सके।
शीर्ष अदालत ने निचली अदालत का फैसला रद्द किया
पीठ ने आगे कहा, “परिस्थितियों की समग्रता और पक्षों के बीच समझौते को देखते हुए हम इस याचिका को स्वीकार करते हैं और एक अप्रैल 2019 के आदेश के साथ-साथ निचली अदालत के 16 अक्तूबर 2012 के आदेश को रद्द करते हुए याचिकाकर्ताओं को बरी करते हैं। अपीलकर्ता नंबर-2 (पी. कुमारस्वामी) को आत्मसमर्पण करने की जरूरत नहीं है।” कुमारस्वामी को निचली अदालत ने आत्मसमर्पण करने से छूट दी थी।
पूरा मामला क्या था
अदालत ने कहा कि 2006 में पी. कुमारस्वामी उर्फ गणेश ने प्रतिवादी ए. सुब्रमण्यम से 5,25,000 लाख रुपये का कर्ज लिया था, लेकिन कर्ज नहीं चुकाया। पीठ ने कहा कि कर्ज चुकाने के लिए कुमारस्वामी ने मेसर्स न्यू विन एक्सपोर्ट कंपनी के नाम पर 5.25 लाख रुपये का चेक दिया। अपर्याप्त पैसे के कारण चेक बाउंस हो गया था, इसलिए प्रतिवादी ने अपीलकर्ता के खिलाफ अधिनियम की धारा 138 के तहत शिकायत दर्ज की थी, जहां निचली अदालत ने 16 अक्तूबर 2012 के आदेश में अपीलकर्ताओं को दोषी ठहराया और प्रत्येक को एक वर्ष के साधारण कारावास की सजा सुनाई।
कुमारस्वामी ने उच्च न्यायालय के आदेश को दी थी चुनौती
उच्चतम न्यायालय ने इस बात का भी जिक्र किया कि कुमारस्वामी ने दोषसिद्धी को अपीलीय अदालत में चुनौती दी थी, जिसने निचली अदालत के फैसले को पलट दिया था और उन्हें व कंपनी को बरी कर दिया था। लेकिन प्रतिवादी के कहने पर मामला उच्च न्यायालय पहुंचा, तो उच्च न्यायालय ने एक अप्रैल 2019 के अपने आदेश में अपीलीय अदालत के आदेश को रद्द कर दिया और अपीलकर्ताओं को दोषी ठहराने वाली निचली अदालत के आदेश को बहाल किया। इसके बाद कुमारस्वामी ने उच्च न्यायालय के आदेश के सर्वोच्च न्यायालय में चुनौती दी।