किताबों में ‘इंडिया’ के बजाय ‘भारत’ का इस्तेमाल, केंद्र ने ठुकराई केरल की यह मांग
एनसीईआरटी की एक समिति ने पिछले साल किताबों में ‘इंडिया’ के बजाय ‘भारत’ लिखने का सुझाव दिया था। इस पर केरल सरकार ने आपत्ति जताई थी और सुझाव पर फिर से विचार करने की मांग की थी। लेकिन, केंद्र ने राज्य सरकार की इस मांग को ठुकरा दिया और कहा कि भारत का संविधान दोनों नामों को मान्यता देता है और एक-दूसरे से अंतर नहीं करता है। राज्य सरकार के सूत्रों ने शुक्रवार को यह जानकारी दी।
केंद्रीय शिक्षा मंत्री में पत्र में क्या कहा
सूत्रों ने बताया कि प्रधान ने कहा कि संविधान दोनों नामों को मान्यता देता है। केंद्रीय मंत्री ने केरल के शिक्षा मंत्री वी शिवनकुट्टी के एक पत्र के जवाब में इस मुद्दे पर केंद्र का रुख स्पष्ट किया। प्रधान ने सामाजिक विज्ञान की किताबों में बदलाव के लिए एनसीईआरटी की 19 सदस्यीय समिति के फैसले का बचाव किया और कहा कि स्वायत्त निकास ‘इंडिया’ और ‘भारत’ दोनों को मानता है और दोनों के बीच अंतर नहीं करता है।
दोनों नामों को मान्यता देता है संविधान: धर्मेंद्र प्रधान
शिवनकुट्टी को लिखे पत्र में केंद्रीय मंत्री ने कहा कि भारत के संविधान के अनुच्छेद-1 में कहा गया है कि इंडिया, जो भारत है, राज्यों का एक संघ होगा। पत्र में उन्होंने कहा, भारत का संविधान ‘इंडिया’ और ‘भारत’ दोनों को देश के आधिकारिक नामों के रूप में मान्यता देता है। जिनका परस्पर प्रयोग किया जा सकता है। राष्ट्रीय शैक्षिक अनुसंधान एवं प्रशिक्षण परिषद (एनसीईआरटी) हमारे संविधान में प्रतिष्ठापित इस भावना को विधिवत स्वीकार करता है और दोनों के बीच कोई भेद नहीं करता है।
केरल के शिक्षा मंत्री ने भेजा था पीएम मोदी को ई-मेल
शिवनकु्ट्टी ने पिछले साल अक्तूबर में प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी और धर्मेंद्र प्रधान को ई-मेल भेजा था और उनसे मामले में दखल देने का अनुरोध किया था। केरल के मंत्री ने शिक्षा प्रणाली और देश की एकता के लिए मौजूदा प्रथा को बनाए रखने पर जोर दिया था। शिवनकुट्टी ने कहा कि पीढ़ियों से छात्रों ने ‘इंडिया’ नाम से देश के समृद्ध अतीत, इतिहास और विरासत के बारे में जाना है।
सिफारिश को स्वीकार नहीं किया जा सकता: विजयन
उन्होंने कहा था, इस नाम में कोई भी बदलाव भ्रम पैदा करेगा और शिक्षा प्रणाली की निरंतरता में रुकावट डालेगा। मुख्यमंत्री पिनरई विजयन ने भी स्पष्ट किया है कि एनसीईआरटी की सिफारिशों को स्वीकार नहीं किया जा सकता है। उन्होंने इस मुद्दे पर सभी नागरिकों से एकजुट होने और देश के मूल तत्व की रक्षा करने का अनुरोध किया था। विजयन ने कहा था कि इस कदम के पीछे की राजनीतिक मंशा पूरी तरह से स्पष्ट है।