बंगाल के राज्यपाल कार्यालय से कोर्ट ने मांगा जवाब, विश्वविद्यालय विधेयक से जुड़ा है मामला
सुप्रीम कोर्ट ने पश्चिम बंगाल विश्वविद्यालय (संशोधन) विधेयक 2022 को मंजूरी देने में निष्क्रियता का आरोप लगाने वाली याचिका पर सोमवार को सुनवाई करते हुए पश्चिम बंगाल के राज्यपाल सीवी आनंद बोस के कार्यालय से जवाब मांगा है। पश्चिम बंगाल विधानसभा ने 2022 में सभी राज्य संचालित विश्वविद्यालयों के कुलाधिपति का दर्जा राज्यपाल की जगह मुख्यमंत्री को देने के लिए एक विधेयक पारित किया था। मुख्य न्यायाधीश डीवाई चंद्रचूड़ और न्यायमूर्ति जेबी पारदीवाला की पीठ ने राज्यपाल और केंद्र सरकार के प्रधान सचिव को नोटिस जारी कर चार सप्ताह के भीतर जवाब मांगा है। पीठ ने कहा, ”नोटिस जारी करें, केंद्रीय एजेंसी को सेवा देने की स्वतंत्रता दें।”
शीर्ष अदालत कलकत्ता उच्च न्यायालय के आदेश के खिलाफ सायन मुखर्जी की ओर से दायर अपील पर सुनवाई कर रही थी। हाईकोर्ट ने इस मुद्दे पर राज्यपाल से जवाब मांगने वाले अपने पहले के निर्देशों पर रोक लगा दी और कहा कि वह याचिका विचार योग्य है या नहीं इसकी जांच करेगी।
शुरुआत में पिछले साल 12 सितंबर को उच्च न्यायालय ने पश्चिम बंगाल के राज्यपाल से जनहित याचिका पर हलफनामा दायर करने को कहा था जिसमें उनकी कथित निष्क्रियता को चुनौती दी गई थी।हाईकोर्ट में दायर याचिका में कहा गया था कि एक ओर पश्चिम बंगाल विश्वविद्यालय (संशोधन) विधेयक 2022 राज्यपाल के पास 2022 से विचाराधीन था, दूसरी ओर राज्यपाल राज्य विश्वविद्यालयों के कुलाधिपति के रूप में अपनी क्षमता में कुलपतियों (वीसी) की नियुक्ति करते रहे।
इस मामले में केंद्र सरकार ने उच्च न्यायालय के समक्ष कहा था कि संविधान के अनुच्छेद 212 और 361 के तहत राज्यपाल को विषय के मुद्दे पर जवाब देने से छूट मिली हुई है। इस दौरान यह भी कहा गया था कि जनहित याचिका राजनीति से प्रेरित है और सही नहीं है।