लाख कोशिशों के बाद भी नहीं रह पाते हैं खुश? विशेषज्ञों ने बताया इसका प्रमुख कारण, तुरंत करें सुधार
खुश रहना हम सभी की प्राथमिकता होती है, पर क्या आप खुश रह पाते हैं? हम में से ज्यादातर लोगों का जवाब न में ही होगा। बीमारियों, चारों तरफ बढ़ती नकारात्मकता और कई प्रकार की अनिश्चितताओं ने तनाव-चिंता जैसी समस्याओं को बढ़ा दिया है, लिहाजा खुश रह पाना अधिकतर लोगों के लिए किसी चुनौती से कम नहीं है।
स्वास्थ्य विशेषज्ञ कहते हैं, इसमें हमारी गड़बड़ दिनचर्या का भी बड़ा योगदान हो सकता है। कई आदतों के कारण भी हमारे लिए खुश रह पाना कठिन हो गया है, नींद की कमी भी उन्हीं में से एक है। अमेरिकन साइकोलॉजिकल एसोसिएशन द्वारा जारी एक अध्ययन के अनुसार, नींद की कमी हमारी मनोदशा और भावनात्मक स्थितियों को प्रभावित करती है, जिसके कारण तनाव-चिंता बढ़ती जा रही है और हम लाख प्रयास के बाद भी आंतरिक खुशी का अनुभव नहीं कर पा रहे हैं। अगर नींद में सुधार कर लिया जाए तो इस समस्या को काफी हद तक कम करने में मदद मिल सकती है। आइए जानते हैं कि अध्ययनों में इस संबंध में क्या पता चलता है?
नींद का संपूर्ण स्वास्थ्य पर असर
शोधकर्ताओं की टीम ने 50 से अधिक वर्षों के शोध के दौरान नींद का शारीरिक और भावनात्मक स्वास्थ्य पर क्या असर होता है, इसे समझने की कोशिश की। साइकोलॉजिकल बुलेटिन जर्नल में प्रकाशित रिपोर्ट में अध्ययनकर्ताओं ने बताया कि नींद की कमी मनोवैज्ञानिक स्वास्थ्य को गंभीर तौर पर क्षति पहुंचा रही है। यही कारण है कि कम उम्र के लोग भी पहले की तुलना में अधिक चिड़चिड़े, क्रोधित, नाखुश और कई प्रकार की मानसिक स्वास्थ्य समस्याओं के शिकार पाए जा रहे हैं।
क्या कहते हैं शोधकर्ता?
मोंटाना स्टेट यूनिवर्सिटी में किए गए इस अध्ययन के प्रमुख लेखक कारा पामर कहते हैं, हमारे समाज में बड़े पैमाने पर नींद विकारों की समस्या देखी जा रही है, जो हमें भावनात्मक तौर पर कमजोर बना रही है। यह अध्ययन इस बात का पुख्ता सबूत प्रदान करता है कि लंबे समय तक जागने, नींद की अवधि कम होने और रात में निर्बाध नींद न ले पाने का भावनात्मक कामकाज पर प्रतिकूल प्रभाव पड़ता है। लिहाजा हम तमाम कोशिशों के बाद भी खुश नहीं रह पाते हैं।
अध्ययन में क्या पता चला?
करीब 5,715 प्रतिभागियों पर किए गए अध्ययनों के डेटा विश्लेषण में शोधकर्ताओं ने पाया कि एक रात भी ठीक से नींद पूरी न होने का संपूर्ण स्वास्थ्य पर नकारात्मक असर हो सकता है। शोध में यह भी पाया गया कि नींद की कमी से चिंता के लक्षण बढ़ गए और भावनात्मक विकारों की समस्या भी विकसित होने लगी। अधिकांश प्रतिभागी युवा-वयस्क थे जिनकी औसत आयु 23 थी।
शोधकर्ताओं के अनुसार, कम उम्र में नींद की समस्याओं का बढ़ना क्वालिटी ऑफ लाइफ के लिए भी समस्याकारक हो सकती है।
नींद में सुधार जरूरी
अध्ययन के निष्कर्ष में शोधकर्ता पामर कहते हैं, हमने पाया गया है कि 30 प्रतिशत से अधिक वयस्कों और 90 प्रतिशत तक किशोरों को पर्याप्त नींद नहीं मिल पा रही है। बड़े पैमाने पर नींद से वंचित समाज में व्यक्तिगत और सार्वजनिक स्वास्थ्य के लिए कई प्रकार की चुनौतियां हो सकती हैं। ये कई बीमारियों का भी कारक है।
शोधकर्ता कहते हैं, मानसिक स्वास्थ्य विकारों से बचना चाहते हैं, खुश रहना चाहते हैं तो नींद को प्राथमिकता दें। दिनचर्या को ठीक करना इसके लिए आवश्यक है। यदि आपको लंबे समय तक अक्सर नींद की समस्या हो रही है तो किसी विशेषज्ञ की समय रहते सलाह जरूर ले लें।