साढ़े तीन लाख लगाए, 17.50 लाख कमाए… खेती ने बदली प्रदेश की महिला किसानों की तकदीर, पढ़ें रिपोर्ट
खेती में नवाचार ने प्रदेश की महिला किसानों की तकदीर बदल दी है। कृषि वैज्ञानिकों का सहयोग और खेती में कुछ अलग और नया करने की ललक ने उन्हें उत्कृष्ट बना दिया है। अभी तक एक-एक रुपये के लिए मोहताज रहने वाली महिलाएं अब खुद पूरे परिवार का खर्च चला रही हैं। खुद को आत्मनिर्भर बनाने के साथ ही अपने गांव के आसपास की महिलाओं को रोजगार को भी स्वावलंबी बना रही हैं। इन उत्कृष्ट महिला किसानों के प्रति न सिर्फ समाज का नजरिया बदला है बल्कि सरकार भी इसका हर स्तर पर सहयोग कर रही है। इन महिलाओं को किसान दिवस पर मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ ने सम्मानित किया। पेश है इन महिलाओं की सफलता की कहानी को बयां करती रिपोर्ट-
सुमित्रा की हेचरी से तैयार मत्स्य बीज की डिमांड पूरे प्रदेश में…
लखनऊ के करोरा निवासी सुमित्रा के पास सिर्फ 0.60 हेक्टेयर जमीन है। दो साल पहले मछली का बीज तैयार करने के लिए हेचरी बनवाई। प्रशिक्षण लेकर मछली के बीज तैयार करना शुरू किया। करीब 3.50 लाख रुपये लगाकर इसकी शुरुआत की। इस साल इन्हें करीब 60 लाख मत्स्य बीज तैयार कर करीब 17.50 लाख रुपये की आमदनी पाई हैं। अब सुमित्रा की हेचरी से तैयार हो रहे मत्स्य बीज की डिमांड पूरे प्रदेश में हैं। वह पूरे परिवार की मालकिन हैं। बेटे को प्रबंधन की पढ़ाई करा रही हैं। आसपास की महिलाओं को मछली उत्पादन का प्रशिक्षण देती हैं।
बहुवर्गीय कार्य ने दिलाई कामयाबी
गोरखपुर जिले के इटहियां गांव निवासी मालती जूनियर हाईस्कूल तक शिक्षा ग्रहण की है। उनके पति भगवान दास अन्य किसानों की तरह ही खेती करते थे। इसी बीच मालती को कृषि विज्ञान केंद्र की जानकारी मिली। वह पति- पत्नी वहां गए और बहुफसली खेती की जानकारी ली।
आर्थिक तंगी झेल रही मालती ने करीब सात एकड़ में गौरजीत किस्म के आम और बीज रहित लीची की बागवानी की। बाग के नीचे जीमीकंद और नर्सरी शुरू कर दी। पशुओं के गोबर से जैविक खाद और वर्मी कंपोस्ट तैयार की। इसी खाद को खेत में प्रयोग करती और खाद बेचती भी हैं।
इस तरह बागवानी, पशुपालन और सब्जी की खेती से हर साल करीब करीब 10 लाख रुपये की आमदनी हो रही हैं। बेटा- बेटी को शहर भेजकर पढा रही हैं। खुद के साथ ही अन्य लोगों को खेती के प्रति प्रशिक्षित करती हैं। अब उनके गांव के साथ ही आसपास के लोग भी बागवानी की ओर बढ़ रहे हैं। इन्हें अनुषांगी कार्य बागवानी और पशुपालन के लिए मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ ने विशिष्ट महिला श्रेणी में 75 हजार रुपये नगद, शाल और प्रशस्ति पत्र देकर सम्मानित किया।
घूंघट छोड़ श्री अन्न अपनाया, हुईं मालामाल
टावा के नगला भिखन निवासी मंत्रवती आर्थिक तंगी से परेशान होकर घर से मजदूरी के लिए निकली थीं। बस स्टैंड पर मिले कृषि विभाग के कर्मचारी ने खेती में नवाचार करने की जानकारी दी। यहीं से मंत्रवती का मन बदला और श्रीअन्न के तहत रागी उत्पादन के लिए कृषि तकनीक संस्थान से प्रशिक्षण लिया। रागी की खेती शुरू की। खाद की जगह पशुओं के गोबर से वर्मी कंपोस्ट खाद तैयार किया। पहले रागी को छिटकवा विधि से बोती थीं लेकिन वैज्ञानिकों की सलाह पर बीजों का उपचार करने के बाद उन्हें लाइन से बुवाई करना शुरू किया।
फसल कटी तो प्रति हेक्टेयर 20.80 क्विंटल रागी का उत्पादन हुआ। जिस फसल को अभी तक घाटे का सौदा माना जाता था। वह मंत्रवती की जिंदगी में बदलाव लाया। पहले साल की कमाई के बाद दूसरे साल उन्होंने अन्य परिवारों से भी रागी की खेती करवाई। अब उनका गांव रागी उत्पादन का सबसे बड़ा केद्र बन गया है। पक्का मकान बन गया और बच्चों को कानपुर भेजकर इंजीयिरिंग की पढाई करा रही हैं।
किसान दिवस पर मुख्यमंत्री ने प्रथम श्रेणी की उत्पादक के रूप में एक लाख रुपये का पुरस्कार दिया। मंत्रवती बताती है कि रागी की फसल करने के बाद वह स्ट्राबेरी व गेंहू की भी खेती करती हैं। इस तरह सभी तरह के खर्च काटकर हर साल करीब तीन से चार लाख रुपये की आमदनी हो रही है। वह वर्मी कंपोस्ट तैयार करने में आसपास की महिलाओं को रोजगार भी दे रही हैं।
प्राकृतिक खेती ने दिखाया नया रास्ता
बुंदेलखंड के महोबा जिले की रिवई गांव निवासी कमला त्रिपाठी खेती के जरिए अपने गांव ही नहीं बल्कि पूरे बुंदेलखंड की पहचान बन गई हैं। वह बताती हैं कि जब उन्होंने खेती की शुरुआत की तो परिवार के लोग नाराज थे और कहते थे कि परास्नातक होने के बाद अपनी शिक्षा मिट्टी में मिला रही हो लेकिन कृषि वैज्ञानिकों का साथ मिला। धीरे- धीरे आमदनी बढ़ी। बुंदेलखंड में अन्ना पशु समस्या हैं, लेकिन कमला ने इन गायों को भी अपनी आदमनी का आधार बनाया।
इनके गोबर और मूत्र को इकट्ठा कर बीजामृत, जीवामृत आदि तैयार किया। इस मिश्रण को सब्जी की खेती में प्रयोग किया। मटर, मूंगफली और अरहर का भरपूर उत्पादन किया। अब पूरे बुंदेलखंड के किसान गौ आधारित खेती की तकनीक सीखने उनके खेतों में आते हैं। इस नए प्रयोग के लिए मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ ने इन्हें 75 हजार रुपये का पुरस्कार दिया।