इस साल वैश्विक जीवाश्म ईंधन उत्सर्जन पहुंचेगा रिकॉर्ड स्तर पर; जानें भारत के लिए क्या हैं अनुमान

अंतरराष्ट्रीय वैज्ञानिकों के एक नए शोध के मुताबिक भारत का जीवाश्म ईंधन उत्सर्जन इस साल 4.6 फीसदी बढ़ने का अनुमान है। वहीं चीन में 0.2 फीसदी की मामूली वृद्धि हो सकती है।

COP29 में पेश की गई रिपोर्ट
बता दें, हालिया शोध की रिपोर्ट अजरबैजान के बाकू में संयुक्त राष्ट्र के जलवायु सम्मेलन COP29 में प्रस्तुत की गई। इसमें बताया गया है कि जीवाश्म ईंधन से होने वाला वैश्विक कार्बन उत्सर्जन 37.4 अरब टन तक पहुंच सकता है, जो 2023 के स्तर से 0.8 फीसदी की वृद्धि है।

पिछले साल की तुलना में अधिक
इतना ही नहीं, इस साल वायुमंडलीय कार्बन डाइऑक्साइड (CO2) का स्तर 422.5 पीपीएम तक पहुंचने का अनुमान है। इससे यह अबतक का सबसे गर्म साल बन सकता है। यह पिछले साल की तुलना में 2.8 पीपीएम अधिक है और औद्योगिक क्रांति से पहले के स्तर से 52 फीसदी अधिक है।

हमें अभी भी कोई संकेत नहीं दिख रहा…
अध्ययन का नेतृत्व करने वाले एक्सेटर के ग्लोबल सिस्टम्स इंस्टीट्यूट के प्रोफेसर पियरे फ्राइडलिंगस्टाइन ने जलवायु परिवर्तन के प्रभावों के बावजूद जीवाश्म ईंधन की खपत में चल रहे बढ़ोतरी पर टिप्पणी की। उन्होंने कहा कि जलवायु परिवर्तन के प्रभाव तेजी से नाटकीय होते जा रहे हैं, फिर भी हमें अभी भी कोई संकेत नहीं दिख रहा है कि जीवाश्म ईंधन का जलना चरम पर पहुंच गया है।

पिछले महीने की एक संयक्त राष्ट्र रिपोर्ट में बताया गया था कि भारत का ग्रीनहाउस गैस उत्सर्जन 2023 में 6.1 फीसदी बढ़ा है, जो वैश्विक कुल का 8 फीसदी है। हालांकि, वैश्विक CO2 उत्सर्जन में भारत का ऐतिहासिक योगदान केवल तीन फीसदी है। देश का प्रति व्यक्ति उत्सर्जन 2.9 टन CO2 समतुल्य (tCO2e) है, जो 6.6 tCO2e के वैश्विक औसत से काफी कम है।

COP29 चर्चा के दौरान जारी ग्लोबल कार्बन प्रोजेक्ट की रिपोर्ट में कहा गया है कि वैश्विक कुल का 32 फीसदी हिस्सा रखने वाले चीन का उत्सर्जन 0.2 फीसदी बढ़ने की संभावना है, हालांकि इसमें गिरावट भी संभव है। संयुक्त राज्य अमेरिका और यूरोपीय संघ का उत्सर्जन, क्रमशः 13 फीसदी और सात फीसदी योगदान देता है। दोनों में कमी आने वाली है। अमेरिका के लिए 0.6 फीसदी और यूरोपीय संघ के लिए 3.8 प्रतिशत की कमी होगी।

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