‘लोक सेवकों में जनता का विश्वास नहीं कम होने दे सकते हैं’, बॉम्बे हाईकोर्ट की अहम टिप्पणी
मुंबई : बॉम्बे हाईकोर्ट के जस्टिस ए. एस. गडकरी और नीला गोखले की खंडपीठ ने 1 जुलाई के अपने फैसले में सोलापुर के सामाजिक कार्यकर्ता अजीत कुलकर्णी की तरफ से दायर याचिका को खारिज कर दिया। दरअसल दिसंबर 2022 में मोहोल तहसील कार्यालय के पूर्व तहसीलदार प्रशांत बेडसे ने लोक सेवक के खिलाफ आपराधिक बल प्रयोग करने और उसे अपने कर्तव्य का निर्वहन करने से रोकने, जबरन वसूली और मानहानि के आरोपों में आजीत कुलकर्णी के खिलाफ प्राथमिकी दर्ज कराई थी।
‘ये कृत्य निंदनीय, इसे शुरू से ही हतोत्साहित करने की जरूरत’
इस मामले में पीठ ने एफआईआर को खारिज करने से इनकार करते हुए कहा कि अजीत कुलकर्णी की तरफ से किसी लोक सेवक को दी गई धमकियां आसानी से किसी लोक सेवक को उसके सार्वजनिक कर्तव्यों को पूरा करने से रोकने के बराबर होंगी, खासकर तब जब धमकियों के साथ आक्रामक और खतरनाक कृत्य भी किए गए हों। इस दौरान अदालत ने कहा, ये कृत्य निंदनीय हैं और इन्हें शुरू से ही हतोत्साहित करने की जरूरत है। पीठ ने आगे कहा कि यह बहुत दुर्भाग्यपूर्ण है कि किसी लोक सेवक को समाज के सही सोच वाले सदस्यों की नजर में उसकी प्रतिष्ठा को कम करने के लिए सोशल मीडिया पर प्रसारित की जा रही अपमानजनक सामग्री के जरिए धमकाया और डराया गया है।
तहसीलदार एक सम्मानित लोक अधिकारी- कोर्ट
मामले में अदालत ने कहा कि जिले में एक तहसीलदार एक सम्मानित लोक अधिकारी होता है और उससे राजस्व मामलों में महत्वपूर्ण कार्य करने की अपेक्षा की जाती है, उस पद पर बैठे अधिकारी को अपने कार्यालय में आने वाले लोगों से आज्ञाकारिता की अपेक्षा होती है। पीठ ने कहा, अगर उनके पद की प्रतिष्ठा उस माहौल में कम हो जाती है जिस पर उनका अधिकार क्षेत्र है, तो उनके कर्तव्यों के निर्वहन में अराजकता और व्यवधान की संभावना है। वर्तमान समय में इंजीनियर विरोध के माध्यम से झूठी कहानी फैलाने का खतरा शिकायतकर्ता जैसे लोक सेवक के लिए काफी डरावना प्रस्ताव है।
कोर्ट ने FIR रद्द करने से किया इनकार
अपने फैसले में अदालत ने आगे कहा कि उसने ये टिप्पणियां केवल लोक सेवकों को उनके सार्वजनिक कर्तव्य का निर्वहन करते समय डराए जाने के खतरों को सामने लाने के लिए की हैं। पीठ ने एफआईआर को रद्द करने से इनकार करते हुए कहा, लोक सेवकों में जनता का विश्वास खत्म नहीं होने दिया जा सकता। ऐसे कृत्यों को गंभीरता से लिया जाना चाहिए। अदालत ने कहा कि इस तरह के लोग सोशल मीडिया की आड़ में छिप जाते हैं और गैर-जिम्मेदाराना हरकतें करते हैं, जिनमें डराने-धमकाने की प्रवृत्ति होती है। पीठ ने कहा कि भारतीय दंड संहिता की धारा 353 (किसी सरकारी कर्मचारी को उसके आधिकारिक कर्तव्य के निर्वहन से रोकने के लिए हमला या आपराधिक बल) के तहत आपराधिक बल शब्द केवल शारीरिक बल तक सीमित नहीं होगा। पीठ ने कहा कि ऐसे कृत्य न केवल अपराध के पीड़ितों को धमकाते हैं, बल्कि आपराधिक न्याय प्रणाली के मूल उद्देश्य को भी विफल करते हैं।