भारत ने फिर दिखाई दरियादिली, पाकिस्तान की 19 साल की बेटी को दी नई जिंदगी; पढ़ें दिल छू लेने वाली कहानी
चेन्नई: पाकिस्तान और भारत के बीच के बिगड़े संबंध किसी से छिपे हुए नहीं है। पाकिस्तान हमेशा ही भारत के खिलाफ जगह उगलता रहता है, लेकिन फिर भी भारत दरियादिली दिखाने से पीछे नहीं हटता। ऐसा ही उदाहरण एक बार फिर देखने को मिला। कराची की 19 साल की बेटी का भारत में सफल हृदय प्रत्यारोपण हुआ है। पाकिस्तानी लड़की को नया जीवन मिलने की दिल को छू लेने वाली कहानी इस बात की ओर ध्यान दिलाती है कि पड़ोसी देश में लोगों के सामने आने वाली किसी भी चुनौती के लिए सीमाओं को कैसे आसान बनाया जा सकता है।
चेन्नई में हुआ हृदय प्रत्यारोपण
कराची की रहने वाली आयशा रशन का चेन्नई के एमजीएम हेल्थकेयर में हृदय प्रत्यारोपण सर्जरी हुई। इस साल 31 जनवरी को लड़की का हृदय प्रत्यारोपण हुआ। सभी प्रक्रियाओं के बाद उसे इस महीने छुट्टी दे दी गई।
14 साल की उम्र में आई थी भारत, फिर…
इंस्टीट्यूट ऑफ हार्ट एंड लंग ट्रांसप्लांट एंड मैकेनिकल सर्कुलेटरी सपोर्ट के कार्डियक साइंसेज डायरेक्टर के चेयरमैन डॉ. केआर बालाकृष्णन ने कहा कि आयशा पहली बार साल 2019 में उनके पास आई थी। तब उसकी उम्र 14 साल थी। उसे दिल से जुड़ी एक गंभीर बीमारी थी। उसकी वजह से वह बहुत बीमार हो गई थी और उसे दिल का दौरा पड़ा था। डॉ. बालाकृष्णन ने कहा, ‘दिल का दौरा पड़ने के बाद उसे सीपीआर देना पड़ा था। सांस आने पर उसे ईसीएमओ मशीन पर रखा था। हमने उस समय एक आर्टिफिशियल हृदय पंप लगाया था। अंततः वह ठीक हो गई और अपने देश वापस चली गई थी।’
उन्होंने आगे बताया कि कुछ ही सालों में वह फिर से बीमार हो गई। इसका एक वाल्व लीक होने लगा। उसके दिल के दाहिने हिस्से ने काम करना बंद सा कर दिया था। हालत इतनी खराब हो गई थी कि पाकिस्तान में उसका इलाज करना बहुत मुश्किल हो गया। वहीं, उसके भारत आने के लिए वीजा हासिल करने में बहुत मुश्किल हुई।
बालाकृष्णन ने कहा कि लड़की की मां एक सिंगल मदद है। उनके पास कोई पैसा या संसाधन नहीं था। हमें बार-बार अस्पताल में भर्ती होने सहित पूरे खर्चों का ध्यान रखना पड़ा। उन्होंने बताया कि 19 साल की आयशा की मदद के लिए चेन्नई का एक एनजीओ एश्वर्या ट्रस्ट सामने आया। वहीं प्रत्यारोपण मरीजों ने धन जुटाकर मदद की।
दिल्ली के बुजुर्ग का मिला दिल
डॉक्टर बालाकृष्ण ने बताया कि दिल्ली के एक ब्रेन डेड बुजुर्ग से हृदय मिलने के बाद ट्रांसप्लांट किया गया। उन्होंने कहा कि सबसे बड़ी चुनौती यह थी कि कोई पैसा नहीं था। इलाज के लिए 30 से 40 लाख रुपये की जरूरत थी। उन्होंने आगे कहा कि अस्पताल प्राइवेट है। इसलिए हमें ट्रस्ट के माध्यम से, अपने स्वयं के संसाधनों और प्रत्यारोपण मरीजों के माध्यम से धन जुटाना पड़ा।इसलिए यह एक बड़ी चुनौती थी।