मासूमियत से कभी हंसाया तो कभी रुलाया, समाज को सच का आईना दिखाती हैं बच्चों पर बनीं ये फिल्में

बॉलीवुड इंडस्ट्री ने एक लंबा सफर तय कर लिया है। इस दौरान बॉलीवुड ने कई सुपरस्टार दिए हैं और तरह-तरह की फिल्में। यहां हर वर्ग का ख्याल रखा गया है। रंग-बिरंगी और बोल्ड फिल्मों के बीच बच्चों व स्टूडेंट के लिए भी कहानियां बुनी गईं। इन फिल्मों ने बच्चों का मनोरंजन किया तो दूसरी ओर सभी को गंभीर संदेश भी दिया। आज हम ऐसी ही कुछ मूवीज का जिक्र करेंगे, जिन्हें खासतौर पर स्टूडेंट्स को ध्यान में रखकर बनाया गया।

तारे जमीन पर
इस फिल्म के लिए आमिर खान के हौंसले की प्रशंसा की जानी चाहिए कि उन्होंने अपने निर्देशन में बनी पहली फिल्म ‘तारे जमीन पर’ एक बच्चे को केन्द्र में रखकर बनाई और बिना बॉक्स ऑफिस की चिंता किए पर्दे पर उतारा। इस फिल्म के जरिए उन्होंने बच्चों के भीतर झांकने की कोशिश की। फिल्म आठ साल के ईशान दर्शील सफारी की कहानी बताती है, जो मानसिक रूप से अपने परिवार के लिए पीड़ित होता है। बच्चे की पहचान शिक्षक रामशंकर निकुंभ करते हैं। फ़िल्म को लोगों ने काफी पसंद किया था।

चिल्लर पार्टी
चिल्लर पार्टी एक बच्चों के गैंग की कहानी है जो बहुत मासूम हैं। उन्हें कोई चिंता नहीं है और मस्त जिंदगी जीते हैं। चंदन नगर कॉलोनी में ये सब रहते हैं। जल्दी ही इनका गैंग में फटका और भीड़ू भी शामिल हो जाते हैं और इनकी दोस्ती अधिक मजबूत हो जाती है। बच्चों की टीम में तब समस्या उत्पन्न हो जाती है, जब भीड़ू की जिंदगी एक नेता की वजह से खतरे में आ जाती है। ये घबराते नहीं हैं और मिलकर लड़ने का फैसला करते हैं। फिल्म ये साबित करती है कि छोटे बच्चे चाहें तो किसी को भी धूल चटा सकते हैं।

स्टेनली का डब्बा
इस फिल्म में फोकस चौथी क्लास के बच्चों पर है। कक्षा में स्टेनली बहुत ही बुद्धिमान और मेहनती है और पूरे क्लास के बच्चों का चहीता भी। स्टेनली किसी वजह से अपना टिफिन नहीं ला पाता। उधर हिंदी के टीचर वर्माजी बच्चों के खाने पर नीयत लगाए रहते हैं। बच्चे अपने टिफिन से स्टेनली को तो खिलाना चाहते हैं, पर वर्मा सर को नहीं। पूरी फिल्म का सार यही है कि शिक्षक ने दूसरे के टिफिन में से खाने पर बच्चे को डांट लगाकर भगाया और अब खुद वही कर रहे हैं। बड़ों की कथनी और करनी के अंतर को बच्चे बहुत साफ तरीके से देखते और महसूस करते हैं।

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