एसपी बघेल बोले, काशी का मतदाता बुद्धिजीवी, वह बिफोर मोदी, आफ्टर मोदी का फर्क समझता है
वाराणसी: पुलिस की नौकरी से केंद्रीय मंत्री तक का सफर तय करने वाले एसपी बघेल कहते हैं कि काशी का मतदाता बुद्धिजीवी है, वह बिफोर मोदी, आफ्टर मोदी का फर्क समझता है। वह जानता है कि काशी में 72 हजार करोड़ रुपये लगे हैं तो विकास भी दिखाई दे रहा है और उसका फायदा शहर और शहर के लोगों को हुआ है।
काशी में प्रचार करने आए हैं, कैसा अनुभव रहा आपका?
बहुत अच्छा अनुभव है। यहां का मतदाता बुद्धिजीवी बहुत है। वे अच्छा-बुरा सबकुछ समझते हैं। वो संकल्प पत्र भी समझते हैं, जीडीपी क्या है समझते हैं, विकास कार्यों को समझते हैं। 72 हजार करोड़ यहां पर लगा है, वह दिख रहा है वह उसको बताते हैं। बिफोर मोदी और आफ्टर मोदी का फर्क समझते हैं।
मैं यहां मतदाताओं से मिलता हूं तो वह कहते हैं कि आपके यहां सांसद का चुनाव होता है, हम तो प्रधानमंत्री चुन रहे हैं। लोग कह रहे हैं कि मोदीजी गोद के बच्चे हैं और राहुल गांधी पेट के बच्चे हैं तो हम गोद के स्वस्थ बच्चे को क्यों छोड़ दें। योजनाओं का लाभ भरपूर मिल रहा है। यहां लड़ाई जीत की है ही नहीं यहां तो टिकट पक्की थी, जीत पक्की थी, लड़ाई तो बड़े अंतर से जीतने की है।
आप कह रहे हैं कि टिकट पक्की थी, जीत पक्की थी, फिर इतने मुख्यमंत्री, केंद्रीय मंत्री और राज्यमंत्री प्रचार में क्यों लगा दिए?
ये इसलिए है कि जब हमारे घर के मुखिया चुनाव लड़ रहे हैं तो हम सभी लोग कुछ योगदान दे सकते हैं तो देना चाहिए। दूसरी बात हम लोग यहां रिकॉर्ड बनाने की कोशिश में हैं कि 2014 और 2019 से बड़ी जीत हमारे नेता की दर्ज हो।
वाराणसी लोकसभा मंडल में पूर्वांचल की 12 लोकसभा सीटें हैं। आपको क्या लगता है मोदीजी के यहां चुनाव लड़ने से कितना असर पड़ेगा बाकी सीटों पर?
मोदीजी वाराणसी से लड़ते हैं तो उसका फर्क आसपास की सीटों पर साफ दिखाई देता है। जैसे योगीजी गोरखपुर से लड़ते हैं, तो उसका फर्क पड़ता है।
अब एक दूसरी चीज देखिए कि अपना किला, पारंपरिक सीट अमेठी से राहुल गांधी जब लड़े और वह किला गिरा तो पास की दीवार यानि की रायबरेली की सीट में दरारें आ गईं तो सोनिया गांधी चुनाव की जगह राज्यसभा चलीं गईं। तो कहा गया कि स्वास्थ्य ठीक नहीं तो राज्यसभा कोई बीमारों का सदन नहीं है।
यहीं दूसरी बात कहूंगा कि मेरी तरह अगर सोनिया गांधी होती जो रोज क्षेत्र में जातीं तो स्वास्थ्य वाली बात कहतीं, उनका साल का औसत देखे तो एक साल में दो बार रायबरेली जातीं थीं। मैं क्षेत्र में कोई शादी, ब्याह सुख दुख में मतदाता को अकेले नहीं छोड़ता। लोग यहां तक कहते हैं कि मैं भैंस के मरने पर भी जाता हूं।