‘यौन तस्करी के पीड़ितों के लिए मजबूत पुनर्वास ढांचे की कमी’, सुप्रीम कोर्ट ने केंद्र से मांगा
सुप्रीम कोर्ट ने कहा कि यौन तस्करी के पीड़ितों के लिए एक मजबूत पुनर्वास ढांचे की कमी है। शीर्ष कोर्ट ने केंद्र से इस मामले पर विचार करने को कहा है और एक हलफनामा दायर करने का निर्देश दिया है। जस्टिस जे.बी.पारदीवाला और जस्टिस पंकज मिथल की पीठ ने कहा, मानव और यौन तस्करी ऐसे अपराध हैं, जो लोगों के मानवाधिकारों का उल्लंघन करते हैं और उनके जीवन, स्वतंत्रता और व्यक्तिगत सुरक्षा का हनन करते हैं। खासतौर पर महिलाएं और बच्चे ऐसे अपराधों के शिकार होते हैं।
शीर्ष कोर्ट ने कहा, यौन तस्करी के पीड़ितों को शारीरिक और मानसिक रूप से कई प्रकार के नुकसान और हिंसा को सहना पड़ता है। उन्हें जानलेवा चोटें और यौन संचारित रोगों जैसी बीमारियों का शिकार होने का खतरा रहता है। कोर्ट ने यह भी कहा कि ऐसे पीड़ितों को चिंता, पीटीएसडी (पोस्ट ट्रॉमेटिक स्ट्रेस डिसऑर्डर), अवसाद और नशे की आदत जैसी मानसिक स्वास्थ्य समस्याएं हो सकती हैं। इन पीड़ितं को लगातार डॉक्टरों और मानसिक स्वास्थ्य विशेषज्ञों की मदद की जरूरत हो सकती है।
पीठ ने कहा, समाज से बहिष्कार और अलगाव भी इन अपराधों से जुड़ा है। जो लोग तस्करी का शिकार होते हैं, उन्हें अक्सर अपने परिवार और समाज से अलग कर दिया जाता है, क्योंकि स माज उन पर शर्म और दोष का ठीकरा फोड़ता है। कोर्ट ने कहा यह अपराध पीड़ित को और अधिक अलग-थलग और समाज से दूर कर देता है। इसके अलावा, यह अपराध पीड़ित के आगे की शिक्षा और विकास की राह में भी गंभीर रुकावट डालता है।