जेलों में ‘जाति आधारित भेदभाव’ मामले को लेकर खफा सुप्रीम कोर्ट, कल आ सकता है ऐतिहासिक फैसला

नई दिल्ली:  सुप्रीम कोर्ट गुरुवार को एक ‘जाति आधारित भेदभाव’ से जुड़ी याचिका पर अपना एतिहासिक फैसला सुनाने वाली है। सुप्रीम कोर्ट में दायर इस याचिका में आरोप लगाया गया है कि देश के कुछ राज्यों के जेल मैनुअल जाति आधारित भेदभाव को बढ़ावा देते हैं। बता दें कि, सुप्रीम कोर्ट ने उत्तर प्रदेश बल्कि मध्य प्रदेश, राजस्थान, बिहार, पश्चिम बंगाल और तमिलनाडु समेत 17 राज्यों से जेल के अंदर जातिगत भेदभाव और जेलों में कैदियों को जाति के आधार पर काम दिए जाने पर जवाब मांगा था।

सुप्रीम कोर्ट की वेबसाइट पर अपलोड की गई 3 अक्टूबर की वाद सूची के अनुसार मुख्य न्यायाधीश डी वाई चंद्रचूड़ और न्यायमूर्ति जे बी पारदीवाला तथा न्यायमूर्ति मनोज मिश्रा की पीठ इस याचिका पर फैसला सुनाएगी। सर्वोच्च न्यायालय ने इस साल जनवरी में इस याचिका पर केंद्र और उत्तर प्रदेश तथा पश्चिम बंगाल सहित कई राज्यों से जवाब मांगा था। हालांकि छह महीने बीतने के बाद भी केवल उत्तर प्रदेश, झारखंड, ओडिशा, तमिलनाडु और पश्चिम बंगाल ने ही अपना जवाब कोर्ट में दाखिल किया है।

यूपी सरकार को लगी थी कड़ी फटकार
बता दें कि पिछली सुनवाई में भारत के मुख्य न्यायाधीश डीवाई चंद्रचूड़ ने उत्तर प्रदेश सरकार के वकीलों की कड़ी फटकार लगाई थी। उत्तर प्रदेश सरकार के वकीलों ने सुप्रीम कोर्ट में दावा किया था कि यूपी की जेलों में कैदियों के साथ कोई जातिगत भेदभाव नहीं होता है। डीवाई चंद्रचूड़ ने उत्तर प्रदेश की जेल नियमावली के कुछ प्रावधान पढ़कर खफा हो गए थे। इस पर उन्होंने कहा था कि, नियम 158 में मैला ढोने के कर्तव्य का जिक्र है। यह मैला ढोने का कर्तव्य क्या है? इसमें मैला ढोने वालों की जाति का उल्लेख है। इसका क्या मतलब है।

जेलों में हो रहा है भेदभाव
याचिकाकर्ता के वकील ने कोर्ट में दायर अपनी याचिका में कहा था कि, इन राज्यों की जेल संहिता जेलों के अंदर काम के आवंटन में भेदभाव करती हैं और कैदियों की जाति के आधार पर उन्हें रखने की जगह तय होती है। याचिका में केरल जेल नियमों का हवाला देते हुए कहा गया कि वे आदतन और फिर से दोषी ठहराए गए दोषियों के बीच अंतर करते हैं। जिसमें कहा गया है कि जो लोग आदतन लुटेरे, घर तोड़ने वाले, डकैत या चोर हैं, उन्हें वर्गीकृत किया जाना चाहिए और अन्य दोषियों से अलग किया जाना चाहिए।

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