बेकाबू भीड़ का नेतृत्व कर रहे थे पूर्व विधायक, नहीं संभाल पाए थे स्थिति, अब हुई सात साल की सजा
रामपुर: ट्रैक्टर-ट्रॉली निकालने को लेकर हुए विवाद के बाद जब किसानों का गुस्सा फूटा तो राणा शुगर मिल प्रबंधन और किसान आमने सामने आ गए। मिल अफसरों पर मनमानी का आरोप लगाते हुए किसान तत्कालीन विधायक कांशीराम दिवाकर के नेतृत्व में मिल परिसर में घुस गए थे और जमकर बवाल काटा था। इस बवाल में अफसरों व कर्मियों को दौड़ाकर पीटा गया था। मौके पर पहुंची पुलिस को भीड़ ने बड़ी मशक्कत के बाद स्थिति को नियंत्रित किया था।
तत्कालीन विधायक परिस्थिति को भांप नहीं पाए थे और हालत बिगड़ते चले गए थे। इस बात का खुलासा कोर्ट में अभियोजन पक्ष की ओर से पेश किए गए गवाहों ने किया। कोर्ट में अभियोजन की ओर से पेश मिल के उप गन्ना प्रबंधक सुशील कुमार ने खुलासा करते हुए कहा कि कांशीराम दिवाकर, सुरेश गुप्ता और संजू यादव ने मौके पर मौजूद भीड़ को उकसाया। भीड़ इसके बाद बेकाबू हो गई और मिल परिसर में घुस गई।
भीड़ ने मिल में घुसकर कर्मचारी उत्तम सिंह, पंकज मलिक, बलराज सिंह, संदीप कुमार के साथ मारपीट की। सामान को तोड़फोड़ दिया। गवाहों ने आरोप लगाया कि भीड़ ने 37 हजार रुपये लूट लिए, जिसमें पुलिस ने बाद में संजू यादव के कब्जे से 10 हजार रुपये बरामद भी किए। गवाहों ने कहा कि भीड़ इतनी बेकाबू हो रही थी कि पुलिस की भी नहीं सुन रही थी। पुलिस को भी काफी परेशानियों का सामना करना पड़ा। बवाल कई घंटे तक चलता रहा था।
कोर्ट परिसर में डटे रहे विधायक समर्थक
बृहस्पतिवार को पूर्व विधायक कांशीराम दिवाकर के तमाम समर्थक कोर्ट परिसर में सुबह से ही पहुंचना शुरू हो गए थे। दोपहर करीब 12 बजे के आसपास पूर्व विधायक समेत छह दोषियों को पुलिस कचहरी लेकर पहुंची, जहां उनको लॉकअप में रखा गया। इसके बाद उनको कोर्ट में पेश किया गया।
इस दौरान पूर्व विधायक के परिवार के सदस्यों के साथ ही अन्य दोषियों के परिवार के लोग व समर्थक पहुंच गए थे। उनसे मिलने की कोशिश में लगे रहे। दोपहर बाद जब फैसला आया तो इसके बाद परिवार के लोग मायूस होकर वापस लौट गए।
दो बार सपा और एक बार भाजपा से विधायक रहे कांशीराम
पूर्व विधायक कांशीराम तीन बार शाहबाद क्षेत्र के विधायक रह चुके हैं। वह 1999 में तत्कालीन विधायक परमानंद दंडी के निधन के बाद हुए उप चुनाव में सपा के टिकट पर चुनाव लड़े और जीत गए। इसके बाद 2002 में वह सपा के टिकट पर ही दूसरी बार विधायक बने, लेकिन 2007 के चुनाव में उन्होंने अपना दल बदला और भाजपा में चले गए। 2007 में हुए चुनाव में वह भाजपा के टिकट पर विधायक बने। मौजूदा वक्त में उनकी पत्नी मुन्नी देवी शाहबाद की ब्लाॅक प्रमुख हैं।