‘नियमों का उल्लंघन, बेटियों को संपत्ति से वंचित करने की साजिश’, गोदनामे पर ‘सुप्रीम’ टिप्पणी

नई दिल्ली: सुप्रीम कोर्ट ने उत्तर प्रदेश के एक संपत्ति विवाद में एक पुराने गोदनामे को खारिज कर दिया है। शीर्ष न्यायालय ने कहा कि यह गोदनामा जानबूझकर बनाया गया था ताकि बेटियों को उनके पिता की संपत्ति में हिस्सेदारी से वंचित किया जा सके। यह मामला भुनेश्वर सिंह नाम के व्यक्ति की संपत्ति से जुड़ा है, जिनकी दो बेटियां – शिव कुमारी देवी और हरमुनिया हैं। एक व्यक्ति अशोक कुमार ने दावा किया कि उन्हें भुनेश्वर सिंह ने 1967 में गोद लिया था और इस आधार पर वह उनकी संपत्ति में अधिकार रखते हैं। उन्होंने गोदनामा और एक फोटो अदालत में पेश किया था।

पहले इलाहाबाद हाईकोर्ट अब सुप्रीम कोर्ट से झटका
लेकिन इलाहाबाद हाईकोर्ट और अब सुप्रीम कोर्ट ने इस गोदनामे को खारिज कर दिया है। सुप्रीम कोर्ट की जस्टिस सूर्यकांत और जस्टिस एन कोटिश्वर सिंह की पीठ ने कहा कि, ‘हमने पूरी सुनवाई और दस्तावेजों को ध्यान से देखा और यह साफ है कि यह गोदनामा सिर्फ बेटियों को उनके हक से वंचित करने के लिए तैयार किया गया था।’

गोदनामे के लिए पत्नी की सहमति जरूरी
गोद लेने की प्रक्रिया में पत्नी की सहमति अनिवार्य होती है, लेकिन इस मामले में ऐसा नहीं हुआ। गोद लेने की तारीख थी 9 अगस्त 1967, लेकिन गोदनामे में पत्नी की न तो सहमति थी, न ही हस्ताक्षर, और न ही वह गोद लेने की रस्म में शामिल थीं। हाईकोर्ट ने भी माना कि गोद लेने की प्रक्रिया में जरूरी कानूनी नियमों का पालन नहीं हुआ। अदालत ने यह भी कहा- एक गवाह ने भी गोद लेने की रस्म की तस्वीरों में मां को पहचानने से इनकार किया। इससे साफ होता है कि गोदनामे में पत्नी की सहमति नहीं थी।

40 साल की देरी पर खेद
इसके साथ ही हाईकोर्ट ने यह भी माना कि इस मामले में गोदनामे की वैधता तय करने में 40 साल से अधिक की देरी हुई, जो दुर्भाग्यपूर्ण है। अदालत ने इसके लिए माफी मांगी।

ग्रामीण इलाकों में बेटियों को संपत्ति से बाहर करने की चाल
सुप्रीम कोर्ट के जस्टिस सूर्यकांत ने सुनवाई के दौरान कहा- हम जानते हैं कि ग्रामीण इलाकों में बेटियों को संपत्ति से बाहर करने के लिए इस तरह की गोद लेने की चालें चलती हैं। यह एक आम तरीका है बेटियों को उनका हक न देने का। सुप्रीम कोर्ट ने कहा कि गोदनामा कानूनी रूप से अमान्य है और इसे खारिज करना बिल्कुल सही फैसला है। इलाहाबाद हाईकोर्ट और पहले राजस्व बोर्ड ने जो फैसला दिया था, वह पूरी तरह से विधिसंगत है।

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