एस्ट्रोनॉट को 24 घंटे में कैसे दिखते हैं 16 सूर्योदय, 16 सूर्यास्त?
ज्यादातर लोगों ने बचपन में अपने बड़ों से ये सवाल जरूर पूछा होगा कि दिन और रात कैसे होते हैं? बड़ों ने इसका जवाब अपनी-अपनी जानकारी के मुताबिक दिया होगा. फिर हमें पता चला कि पृथ्वी सूर्य के चारों ओर अंडाकार कक्षा में चक्कर लगाती है.
साथ ही अपनी धुरी पर भी तेजी से घूमती है. घूमने के दौरान पृथ्वी का जो भाग सूर्य के सामने होता है, वहां दिन होता है. वहीं, जो भाग सूर्य की रोशनी से छिपा रहता है, वहां रात होती है. धरती अपनी धुरी पर करीब 1670 किमी प्रति घंटा की रफ्तार से घूमती है. इस रफ्तार से घूमने पर भी पृथ्वी को अपनी धुरी पर एक चक्कर लगाने में 24 घंटे लगते हैं. यही हमारा एक दिन होता है, जिसमें करीब 12 घंटे सूर्य का प्रकाश और 12 घंटे अंधकार रहता है.
अब सवाल ये उठता है कि धरती से बाहर निकलते ही जब एस्ट्रोनॉट्स अंतरिक्ष में पहुंच जाते हैं और अब तक पढ़ी गईं समय की सभी परिभाषाएं ढहने लगती हैं तो उन्हें दिन और रात का पता कैसे लगता है? वहीं, तेजी से अंतरिक्ष में घूम रहे इंटरनेशनल स्पेस स्टेशन यानी आईएसएस पर मौजूद एस्ट्रोनॉट्स के लिए दिन और रात कैसे होती है? आसान भाषा में कहें तो आईएसएस एक बड़ी अनुसंधान सुविधा है. इसका इस्तेमाल अंतरिक्ष में माइक्रोग्रैविटी एक्सपेरिमेंट्स के लिए किया जाता है. अमेरिका की स्पेस एजेंसी नासा, रूस की रॉस्कॉस्मॉस, यूरोप की ईएसए, जापान की जेएक्सए और कनाडा की स्पेस एजेंसी सीएसए के सहयोग से लॉन्च किया गया अंतरिक्ष स्टेशन 400 किमी की औसत ऊंचाई पर एक अंडाकार पथ पर धरती की परिक्रमा करता है.
24 घंटे में 16 सूर्योदय-16 सूर्यास्त देखते हैं एस्ट्रोनॉट्स
इंटरनेशनल स्पेस स्टेशन पर किसी भी समय औसतन 5 से 7 अंतरिक्ष यात्री रहते हैं. क्या इन एस्ट्रोनॉट्स को आईएसएस पर दिन और रात का अनुभव होता है? अगर हां, तो क्या वे पृथ्वी पर दिन और रात क तरह ही अनुभव होते हैं? बता दें कि आईएसएस 27,600 किमी प्रति घंटा की रफ्तार से धरती की परिक्रमा करता है. ये करीब 90 मिनट में पृथ्वी का एक चक्कर पूरा करता है. स्पेस स्टेशन करीब आधा समय सूर्य के प्रकाश और बाकी समय पृथ्वी की छाया में बिताता है. इस प्रकार स्पेस स्टेशन हर चक्कर में करीब 45 मिनट दिन के उजाले और 45 मिनट अंधेरे में रहता है. आईएसएस 24 घंटे में 16 बार पृथ्वी की परिक्रमा करता है. साफ है कि धरती के एक दिन में आईएसएस पर मौजूद एस्ट्रोनॉट्स 16 सूर्योदय और 16 सूर्यास्त देखते हैं.
आईएसएस 27,600 किमी प्रति घंटा की रफ्तार से परिक्रमा करते हुए करीब 90 मिनट में पृथ्वी का एक चक्कर पूरा करता है.
तेजी से दिन-रात का होना क्यों बन सकता है समस्या?
एस्ट्रोनॉट्स के लिए अंतरिक्ष से एक दिन में 16 सूर्यास्त और 16 सूर्योदय देखना शुरुआत में शानदार अनुभव होता है. लेकिन, लंबे समय में यह उनके लिए गंभीर समस्या खड़ी कर देता है. दरअसल, मानव शरीर 24 घंटे के चक्र पर चलने के लिए बना है. सूर्य की रोशनी इस चक्र को नियंत्रित करने में बड़ी भूमिका निभाती है. धरती पर हमारी सर्कैडियन रिदम लाइट पैटर्न की आदी है. सूरज की रोशनी हमें जगाती है, तो अंधेरा नींद को बढ़ावा देता है. ऐसे में सूरज की रोशनी और अंधेरे के बीच तेजी से स्विच करने पर अंतरिक्ष यात्रियों की जैविक घड़ी पर काफी असर पड़ सकता है. इससे एस्ट्रोनॉट्स को लगता है, जैसे उन्हें लगातार जेट लैग हो रहा हो. इससे बचने के लिए आईएसएस पर धरती के सामान्य दिन-रात का माहौल बनाया जाता है.
आईएसएस पर कैसे बनाते हैं सामान्य दिन-रात का माहौल?
इंटरनेशनल स्पेस स्टेशन पर धरती के दिन और रात जैसा माहौल बनाने के लिए आईएसएस को यूनिवर्सल को-ऑर्डिनेटेड टाइम यानी यूटीसी पर सेट किया गया है. यूटीसी समय का वैश्विक मानक है, जो दो फैक्टर्स का इस्तेमाल कर तय किया जाता है. पहला इंटरनेशन एटॉमिक टाइम, जिसमें बहुत ही ज्यादा सटीक परमाणु घड़ियों का इस्तेमाल कर गण्ना की जाती है. दूसरा, यूनिवर्सल टाइम, जिसमें पृथ्वी के घूर्णन के आधार पर समय की गणना की जाती है. चूंकि, आईएसएस कई देशों का संयुक्त प्रोजेक्ट है, जिसमें दुनिया की पांच प्रमुख अंतरिक्ष एजेंसियां शामिल हैं. लिहाजा, यूटीसी सबसे अच्छा विकल्प था. ये सभी एजेंसियों के बीच प्रभावी सहयोग की सुविधा उपलब्ध कराता है.