भविष्य के प्रति कैसी उम्मीद; PM मोदी
15 अगस्त को माननीय प्रधानमंत्री ने हजार साल की गुलामी के अंत और हजार ही साल के गौरव की शुरुआत के बारे में बात की। जाहिर है कि ये दोनों सहस्राब्दियां ठीक उसी जगह और उसी क्षण में मिल रही थीं, जहां वह उस वक्त खड़े थे, और बोल रहे थे। अगर यह वाकई सच होता, तो उनका यह भाषण ऐसी ही पहले घटित कुछ दूसरी घटनाओं की तरह युगप्रवर्तक होता। यह वैसा ही होता, जैसे सिद्धार्थ को बोध की प्राप्ति हुई हो या फिर यीशु का जन्म या फिर पैगंबर मुहम्मद को हुआ रहस्योद्घाटन। अगर भौतिक नजरिये से देखें, तो यह कुछ वैसा होता, जैसे पेड़ से सेब का गिरना, बिजली की खोज, टेलीफोन का आविष्कार, राइट बंधुओं की पहली उड़ान, परमाणु का विभाजन या फिर चंद्रमा पर मनुष्य के पहले कदम। उस युगांतकारी क्षण का मैं साक्षी न हो सका, इसका मुझे खेद है।
खैर, मैं साक्षी बना रोजमर्रा की एक सांसारिक घटना का। राजदीप सरदेसाई ने इंडिया टुडे पर अपने एक शो में संसद के दो सदस्यों का मुकाबला कराया। इनमें से एक थे भाजपा के जयंत सिन्हा और दूसरे थे कांग्रेस के शशि थरूर। राजदीप ने अपने सवाल इनसे पूछे और दर्शक के तौर पर मौजूद थे कॉलेज के काफी जानकार और स्पष्टवादी छात्र। ‘भारत@100’ के बारे में दोनों अतिथियों के शुरुआती वक्तव्यों ने मेरी उत्सुकता बढ़ा दी। जयंत सिन्हा 2047 तक सतत समृद्धि की बात कर रहे थे, जबकि शशि थरूर 2047 तक समावेशी भारत की बात कर रहे थे। इससे मेरे दिमाग में एक सवाल आया कि हम दोनों को क्यों नहीं पा सकते? अपने-अपने राजनीतिक दलों की स्थिति को प्रतिबिंबित करने का दावा करने वाले दोनों सांसदों को सुनकर मेरे मन में एक पीड़ादायक विचार आया कि शायद भारत इनमें से कुछ भी नहीं पा सकता।
बयानों में बड़ा फर्क
मैं इस आलेख में जयंत सिन्हा द्वारा भारत के संविधान को सुरक्षित रखने, पंथनिरपेक्षता, संघवाद और मानवाधिकार को उनके पूर्ण समर्थन तथा कानून के शासन व जवाबदेहिता बनाए रखने के लिए किए गए उनके वायदे को गहराई से देखना चाहता हूं। मॉडरेटर के सीधे सवालों पर उन्होंने साफगोई से जवाब दिया, ‘हां, आपको विवाह करने, भोजन करने और अपने धर्म को मानने का अधिकार है।’ बगैर पलक झपकाए उन्होंने जोर देकर कहा, ‘अपनी पार्टी के भीतर भी हम खुलकर अपने मतभेद व्यक्त कर सकते हैं। मैंने खुद अपनी पार्टी के वरिष्ठों से मिलकर और सभी गंभीर मसलों पर बात की है।’ जब जयंत सिन्हा से पूछा गया कि उनके ख्याल से 2047 में देश के लिए सबसे महत्वपूर्ण मुद्दा क्या होगा, तब उन्होंने कहा, ‘स्वतंत्रता और अपने अनुसार जीने की आजादी।’ मुझे यकीन है कि जयंत सिन्हा ने राजदीप सरदेसाई के शो में जो कुछ कहा, उस पर वह वाकई भरोसा भी करते होंगे।
ठीक इसके अगले दिन हमारे 77वें स्वतंत्रता दिवस के दिन माननीय प्रधानमंत्री 90 मिनट तक बोले। मैंने उनके भाषण का अंग्रेजी अनुवाद पढ़ा। कुल मिलाकर देखें, तो यह पूरा भाषण ‘मैं’ और ‘मेरा’ पर आधारित था। इसमें उनके विचार थे, जो उन्हें लगता है कि पिछले नौ-10 साल की उपलब्धियां रही हैं। और, इसके बाद उन्होंने अपनी चिर-परिचित कोड भाषा में भ्रष्टाचार, वंशवाद और तुष्टिकरण को कोसना शुरू किया। हमें पता है कि उनके निशाने पर कौन हैं। इसमें विपक्षी नेता, गांधी परिवार और मुसलमान शामिल हैं। उसके बाद का उनका भाषण चुनावी रैली के अभ्यास जैसा था। हालांकि सच तो यह है कि पिछले नौ-10 वर्षों में कुछ भी नहीं बदला है।
आइए, अब जरा जयंत सिन्हा के बयानों पर लौटते हैं और उन्हें माननीय प्रधानमंत्री के भाषण से जोड़ने की कोशिश करते हैं। जयंत सिन्हा कॉलेज के युवा छात्रों को यह आश्वस्त कर रहे थे कि 2047 का शताब्दी वर्ष एक स्वर्णिम काल होगा। लेकिन माननीय प्रधानमंत्री ने नई सहस्राब्दी का बखान करते हुए उन चीजों की तरफ कोई संकेत नहीं किया, जिनका वादा जयंत सिन्हा कर रहे थे। न उन्होंने संविधान के संरक्षण पर बात की, न पंथनिरपेक्षता या संघवाद पर, न मानवाधिकारों पर, न कानून के शासन पर और न ही जवाबदेही सुनिश्चित करने पर। जाहिर है कि जयंत सिन्हा और माननीय प्रधानमंत्री सहस्राब्दी की तस्वीरों पर अलग-अलग रंग भरते दिखे।
असुविधाजनक सवाल
जयंत सिन्हा के बयानों को अखबारों, टेलीविजन चैनलों और सोशल मीडिया पर रोज दिखने वाली खबरों के साथ मिलाकर देखते हैं। अगर कॉलेज के युवा छात्रों के पास अपनी पसंद से शादी करने का अधिकार है, तो अपने से अलग जाति या धर्म में शादी करने वाले जोड़ों को मारा, पीटा या परेशान क्यों किया जाता है? अगर कॉलेज के युवा छात्रों को अपनी पसंद के भोजन का अधिकार है, तो कर्नाटक में मांस को लेकर उठने वाले विवाद की क्या वजह रही थी? बजरंग दल, हिंदू महापंचायत और दक्षिणपंथी संगठनों की भूमिका क्या है और वे मुसलमानों और ईसाइयों के प्रति नफरत का जहर क्यों उगलते हैं? सबसे बड़ा सवाल, हमारे चारों तरफ इतनी हिंसा क्यों है? अगर कानून के शासन को बनाए रखने का वादा किया जा रहा है, तो दिल्ली में दंगों, मणिपुर में गृहयुद्ध जैसे हालात और नूंह, हरियाणा में सांप्रदायिक दंगों की वजह आखिर क्या है? गरीबों के आवास और छोटी दुकानों को ढहाने के लिए बुलडोजर का सहारा क्यों लिया जा रहा है?
अगर संविधान की संरक्षित रखने की बात हो रही है, तो संसद में अनुच्छेद 370 को निरस्त करने के लिए कानून क्यों लाया गया और दिल्ली में उप-राज्यपाल और चुनी गई सरकार के बीच संविधानिक संतुलन को क्यों बिगाड़ा गया? ये असुविधाजनक सवाल हैं, लेकिन मुझे यकीन है, कॉलेज के छात्र इनका जवाब जरूर सुनना चाहेंगे। शो के अंत में जो दो सवाल पूछने की उन्हें अनुमति दी गई थी, वे सवाल अच्छे थे। शो भी काफी अच्छा था, लेकिन छात्रों के सवालों के जो जवाब दिए गए, वे संतोषजनक बिल्कुल नहीं थे।