दुनिया जब देख रही थी सूर्यग्रहण, तब NASA ने सूरज की ओर क्यों भेजे 3 रॉकेट्स?
अमेरिका में साल का आखिरी सूर्यग्रहण दिखाई दे चुका है. इस दौरान आसमान में ‘रिंग ऑफ फायर’ बनते हुए देखा गया, यानी सूर्य के चारों ओर एक छल्ला बनता हुआ दिखा. जहां सूर्यग्रहण पर लोगों की निगाहें टिकी हुई थीं, उसी समय अमेरिकी स्पेस एजेंसी NASA ने एक बड़े मिशन को अंजाम देने का प्लान बनाया.
नासा ने सूर्यग्रहण के दौरान तीन रॉकेट्स को सीधे उसकी छाया की ओर लॉन्च किया. इस लॉन्च का एक खास मकसद भी रहा.
नासा के इस मिशन का नाम ‘एटमोस्फेरिक परटरबेशन अराउंड द एक्लिप्स पाथ’ है, जिसे APEP के तौर पर भी जाना जाता है. अमेरिकी स्पेस एजेंसी ने न्यू मैक्सिको के व्हाइट सैंड मिसाइल रेंज से इन तीनों ही रॉकेट्स को हवा में लॉन्च किया. नासा ने बताया कि उसका ये मिशन पूरी तरह से साइंटिफिक मिशन है, जिसका मकसद पृथ्वी के वातावरण के बारे में अच्छे से समझना है. नासा ये समझना चाहता है कि ग्रहण के दौरान रोशनी में बदलाव का क्या असर होता है.
नासा ने क्यों लॉन्च किया ये मिशन?
दरअसल, पहले हुए ग्रहणों से मिली जानकारी से ये मालूम चलता है कि जब रोशनी में तुरंत बदलाव होता है, तो इसका पृथ्वी पर असर पड़ता है. पृथ्वी पर तापमान, हवा के पैटर्न और यहां तक कि जानवरों के व्यवहार में भी बदलाव होने लगता है. लेकिन इस बात की बेहद ही कम जानकारी है कि पृथ्वी के ऊपरी वायुमंडल, जिसे विद्युत-आवेशित ऊपरी वायुमंडल या आयनमंडल कहा जाता है, में क्या असर होता है. पृथ्वी की सतह से ये जगह आसमान में 50 से 80 किमी के बीच है.
आयनमंडल में सूरज की अल्ट्रावायलेट रेडिएशन एटम से इलेक्ट्रॉन को अलग कर देती है. इसकी वजह से पूरे दिन यहां आवेशित पार्टिकल्स होते हैं. जैसे ही सूरज की रोशनी खत्म होती है, वैसे ही इनमें से कई इलेक्ट्रॉन न्यूट्रल एटम के साथ मिल जाते हैं. जब इन पर फिर से रोशनी पड़ती है, तो ये फिर से अलग हो जाते हैं. अगर आसान भाषा में कहें तो नासा ये समझना चाहता है कि ग्रहण की वजह से पृथ्वी के वातावरण में क्या-क्या बदलाव देखने को मिलते हैं.