खरीफ दलहन की बुआई में क्यों हुआ सुधार?
सितंबर के शुरुआत में हुई मानसून की बरसात की वजह से प्रमुख दलहन उत्पादक राज्यों में खरीफ दलहन की बुआई में सुधार देखने को मिल रहा है. कृषि मंत्रालय के ताजा आंकड़ों के मुताबिक 22 सितंबर तक देशभर में खरीफ दलहन की बुआई 4.6 फीसद की गिरावट के साथ 122.57 लाख हेक्टेयर दर्ज की गई है, जबकि पिछले साल की समान अवधि में यह आंकड़ा 128.49 लाख हेक्टेयर का था.
बता दें कि सितंबर के पहले हफ्ते तक दलहन का रकबा 8 फीसद से ज्यादा पिछड़ा हुआ था.
तुअर का रकबा 5 फीसद पिछड़ा
आंकड़ों के मुताबिक प्रमुख दलहन तुअर का रकबा करीब 5 फीसद पिछड़कर 43.69 लाख हेक्टेयर दर्ज किया गया है, जबकि पिछले साल इस अवधि में 46.06 लाख हेक्टेयर में तुअर की खेती हुई थी. उड़द का रकबा भी करीब डेढ़ फीसद पिछड़ गया है. अभी तक देशभर में 32.79 लाख हेक्टेयर में उड़द की बुआई दर्ज की गई है, जबकि पिछले साल इस अवधि में 33.31 लाख हेक्टेयर में उड़द बोया गया था. 22 सितंबर तक देशभर में मूंग की खेती करीब 7 फीसद की गिरावट के साथ 31.56 लाख हेक्टेयर में दर्ज की गई है, जबकि पिछले साल की समान अवधि में इसकी खेती 33.92 लाख हेक्टेयर में हुई थी.
धान की बुआई 3 फीसद आगे
कृषि मंत्रालय के आंकड़ों के मुताबिक 22 सितंबर तक देशभर में धान का रकबा करीब 3 फीसद बढ़कर 411.52 लाख हेक्टेयर हो गया है, जबकि पिछले साल इस अवधि में धान की खेती 400.72 लाख हेक्टेयर में हुई थी. हालांकि सोयाबीन का रकबा पिछले साल के आस-पास ही है. सोयाबीन की बुआई 125.59 लाख हेक्टेयर में हो चुकी है, जबकि पिछले साल इस अवधि में इसका रकबा 124.77 लाख हेक्टेयर था.
अगले हफ्ते हो सकती है मानसून की वापसी
मानसून सीजन के आधिकारिक तौर पर खत्म होने में हफ्ताभर बचा है और अभी तक देश के अधिकतर हिस्सों से मानसून की वापसी की शुरुआत नहीं हुई है. मौसम विभाग के मुताबिक मानसून की वापसी को लेकर परिस्थितियां अनुकूल होने लगी हैं और अगले हफ्ते से मानसून की वापसी की शुरुआत हो सकती है. इस बीच मानसून सीजन के दौरान बरसात की कमी का आंकड़ा घटकर 7 फीसद पर आ गया है. अगस्त के दौरान बरसात की भारी कमी की भरपाई कुछ हदतक सितंबर में हुई बरसात से हुई है. मौसम विभाग के मुताबिक अबतक बीते मानसून सीजन के दौरान देशभर में औसतन 769.6 मिलीमीटर बरसात हुई है जबकि सामान्य तौर पर इस दौरान 827.2 मिलीमीटर बारिश होती है. इस बीच दक्षिण भारत में पानी के कई जलाशय ऐसे हैं जिनमें पानी का स्तर पिछले साल के मुकाबले कम है.